हिन्दू धर्म का इतिहास
हिन्दू धर्म क्या है
यह दुनिया का पहला धर्म है’ ऋग्वेद दुनिया की पहली लिखी हुई किताब है जिसे 1800-1500 bc के बीच लिखा गया था. हालांकि जो वेद है वह हजारों वर्षों से बातचीत परंपराओं से जीवित रहे हैं और जब लिखने का आविष्कार हो गया तब इसको लिख दिया गया यह वह समय था. जब अरब में पैगंबर इब्राहिम यहूदी धर्म की नींव रख रहे थे उसके बाद 1300 bc पैगंबर मूसा ने इसे स्थापित रूप दे दिया.
हमारे संदर्भ और रिसर्च स्टडी के अनुसार इनसे भी पहले नूर हुए थे और सबसे पहले जो हुए वह थे. आदम हिंदू पौराणिक इतिहास की बात यदि माने तो प्रथम व्यक्ति स्वयं मनु को मान जाता है.
उस काल के दौरान भी वेद प्रचलित थे ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मांड के 39 में पीढ़ी में सूर्यवंशी राम का जन्म हुआ इसका मतलब यह होता है कि श्री राम के जन्म होने से भी हजारों साल पहले से यह धर्म चलता हुआ आ रहा है.
हिन्दू धर्म की स्थापना कब हुई

हमारे अब तक की रिसर्च स्टडी के अनुसार इसी तरह वासुदेव श्री कृष्ण का भजन चंद्रवंश में हुआ जिसमें ब्रह्मांड की सातवीं पीढ़ी में राजा यदु हुए और राजा यदु के 59 वे पीडी में वासुदेव श्री कृष्ण हुए ब्रह्मां के छठी पीढ़ी में राजा ययादी हुए और राजा ययादी हुए राजा ययादी के पांच प्रमुख बेटे थे पूर्व, यदु, टूरबस, भानु और ध्रुव इन्हें वेदों के अंदर पंचनंद कहा गया है. हमारी अब तक इकट्ठी की गई जानकारी के अनुसार 7200 bc मैं यानी कि आज से 9200 साल पहले राजा ययादी के पांच बेटों का पूरी दुनिया के अंदर राज था.
पांचों बेटा ने अपने अपने नाम से राजवंशों की स्थापना की यदु से यादव तिरुवसु से यमन ध्रुव से भोज अनु से मिलिछ और पूर्व से पूरो वंश की स्थापना हुई. वही हमारी रिसर्च बताती है ब्रह्मा की चौथी पीढ़ी में व्यवस्क मनु हुए व्यवस्क मनु के 10 बेटे थे.
इल इश्कबापू कुशनाम अरिष्ट दृष्ट नारिश्चंद्र करूस महाबली सरयादी और प्रसिद्ध राम का जन्म इक्ष्वाकु के कुल मैं हुआ था. जैन धर्म के तीर्थंकर निम्मी यानी कि नेमीनार जी भी इसी कुल के थे इक्ष्वाकु कुल में कई महान प्रतापी राजा ऋषि अरिहंत और भगवान हुए हैं.
इस व्यवस्क मनु को ही इब्राहिमी धर्म में नू कहा जाता है जिनके काल में जल प्रलय हुआ था. व्यवस्क मनु के 10 पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इसी प्रकार इक्ष्वाकु कुल की स्थापना की हिंदू धर्म में कई महान संस्थापक हुए हैं.
अक्सर यह कहा जाता है हिंदू धर्म का कोई स्थापक नहीं है लेकिन इस सवाल का जवाब हमें वेद उपनिषद और गीता में मिल जाता है. क्योंकि आम हिंदुजा नहीं पढ़ते इसलिए इस ज्ञान से अनजान है जो पढ़ते भी हैं वह भी ध्यान से नहीं पड़ते. इसलिए वह भी अनजान है.
धर्म शास्त्रों में एक श्लोक है जिसका अर्थ है कि 4 ऋषि ने सबसे पहले वेदों को सुना जिस परमात्मा ने आदि सृष्टि में इंसानों को पैदा कर अग्नि आदि चारों ऋषि के द्वारा चारों वेद ब्रह्मा को प्राप्त करवाएं.
उस ब्रह्मा से अग्नि वायु आदित्य अरंगी से ऋग् यजू शाम और अथर्ववेद को ग्रहण किया पूरी दुनिया में पहले वैदिक धर्म ही था. फिर इस धर्म की दुर्गति होने लगी लोगों और तथाकथित संतो ने मध्य नेता को जन्म दिया इस तरह एक ही धर्म के लोग कहीं जातीय और उप जातियों में बट गए.
यह जातिवादी लोग ऐसे थे जो वेद वेदांत परमात्मा में कोई आस्था यह विश्वास नहीं रखते थे. इनमें से एक वर्ग स्वयं को वैदिक धर्म का अनुयाई या आर्य कहता था. तो दूसरा जादू टोना में विश्वास रखने वाला. और नेचुरल एलिमेंट की पूजा करने वाला था दोनों ही धर्म भ्रम भटकाऊ में जी रहे थे.
क्योंकि असल में उनका वैदिक धर्म से कोई नाता ही नहीं था. श्री कृष्ण के काल में श्री कृष्ण के काल में ऐसे बहुत से आवैदिक समुदाय मौजूद थे. ऐसे में श्री कृष्ण ने सभी को एक किया और फिर से वैदिक सनातन धर्म की स्थापना की.
पूर्ण पुरुषोत्तम श्री कृष्ण गीता में अर्जुन से कहते भी हैं की यह परंपरा से प्राप्त ज्ञान पहले सूर्य ने व्यवस्क ने मनु से कहा व्यवस्क मनु के बाद अन्न ब्रह्म दृश्यों से होता हुआ यह ब्रह्म ज्ञान हम तक आया और अब आप तक पहुंच रहा है.
ब्रह्मा विष्णु महेश सहित अग्नि आदित्य वायु और अंगिरा ने इस धर्म की स्थापना की अगर ऑर्डर की बात करें तो विष्णु से ब्रह्मा ब्रह्मा के 11 रुद्र 11 प्रजापति और स्वयं मनु के माध्यम से इस धर्म की स्थापना हुई. इसके बाद इस धार्मिक ज्ञान की शिव के 7 शिष्य से अलग-अलग शाखाओं का निर्माण हुआ.
वेद और मनु सभी धर्मों का मूल है मनु के बाद कई मैसेंजर से आते रहे. और इस ज्ञान को अपने अपने तरीके से लोगों तक पहुंचाया लगभग कई हजारों साल से भी अधिक सालों की परंपरा से यह संपूर्ण ज्ञान श्री कृष्ण और गौतम बुध के बीच तक पहुंचा.
यदि आप से यह कोई पूछे कौन है हिंदू धर्म का संस्थापक तो आपको कहना चाहिए ब्रह्मा है प्रथम और श्री कृष्ण अंतिम है. ज्यादा ज्ञानी व्यक्ति हो तो उसे कहो अग्नि वायु आदित्य और अंगिरा है. यह किसी पदार्थ के नहीं बल्कि ऋषियों के नाम है तो दोस्तों यह थे. वह महान कारण जिन्होंने हिंदू धर्म को सर्वश्रेष्ठ बनाया.
हिन्दू धर्म के 16 संस्कार

हिंदू धर्म के अंतर्गत मनुष्य के जन्म से लेकर उसके मृत्यु तक 16 कर्म बताए गए हैं. इन 16 कर्मों को 16 संस्कार कहा जाता है. इनमें से हर एक संस्कार एक निश्चित समय के अनुसार किया जाता है. कुछ संस्कार तो शिशु के जन्म के बाद किया जाते हैं और जबकि कुछ जन्म के समय ही और कुछ मृत्युपरांत किया जाते हैं.
जो भी मनुष्य इस संस्कार के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करता है वह सदैव बिना किसी समस्या के जीवन के सभी सुखों को आनंद पूर्वक भोगता है. परंतु जो मनुष्य इन परंपराओं का मान नहीं करते वह अपने जीवन में सदैव कुछ विशेष तरह की परेशानियों से जूझता है तो आइए एक बार विस्तार से प्रकाश डालते हैं या फिर वह कौन से संस्कार होते हैं. जिसका पालन प्रत्येक रूप से हर हिंदुओं को पालन करना चाहिए.
गर्भाधान संस्कार
स्त्री और पुरुष के शरीर के मेल को गर्भाधान संस्कार कहा जाता है. विधिपूर्वक संस्कार से युक्त गर्भाधान से अच्छी और सुयोग्य संतान की उत्पत्ति होती है. इस विषय में महा ऋषि चरण कहते हैं की गर्भाधान के लिए यह निश्चित है स्त्री एवं पुरुष मनसे फंक्शन और शरीर से पुष्ट हो उन्हें चाहिए कि वह हमेशा सर्वश्रेष्ठ भोजन करें सदा प्रसन्न रहें तभी एक उत्तम चरित्र और प्रेम से पूर्ण संतान का उत्पत्ति होती है.
जो साक्षात राम और कृष्ण की तरह आदर्श होते हैं इसके विपरीत यदि कोई प्रेमी युगल इन नियमों को ध्यान में नहीं रखता है तो कर्ण और दुर्योधन जैसे प्रेम से रिक्त संतान का जन्म होता है जो अपने माता पिता और पूरे समाज के लिए अभिशाप बन जाते हैं.
पुंसवन संस्कार
पुंसवन संस्कार गर्भधारण के 2 महीने बाद किया जाता है यह संस्कार मां को अपने गर्भस्थग शिशु के ठीक से देखभाल करने योग्य बनाने के लिए किया जाता है. पुंसवन संस्कार गुणवान एवं स्वस्थ संतान के लिए किया जाता है.
सिमनंतोन्नयन संस्कार
सिमनंतोन्नयन संस्कार गर्भावस्था में छठे महीने में किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस समय गर्भ में पल रहा संतान सीखने योग्य हो जाता है इसलिए माता को चाहिए कि वह अपने आचार विचार और वाणी पर संयम रखें’ क्योंकि वह जैसा आचरण करेंगे वैसा ही आचरण आगे चलकर वह बालक भी करेगा जो उनके आने वाली संतान है.
जातकर्म संस्कार
शिशु की उत्पत्ति होने के बाद जात कर्म संस्कार करने से माता के सारे दोष दूर हो जाते हैं. इसके अंतर्गत नाल छेदन से पूर्व नवजात शिशु को सोने की चम्मच या अनामिका उंगली से शहद और घी को चटाया जाता है.
इसमें की घी आयु को बढ़ाने वाला तथा वार पित्त नाशक होता है जबकि शहद को कफ नाशक माना गया है. इसलिए शिशु को सोने की चम्मच से शहद और घी चटाने से स्त्री दोष अर्थ अर्थ कफ और पित्त का नाश होता है.
नामकरण संस्कार
जन्म के 11 दिन बाद शिशु का नामकरण किया जाता है. इस संस्कार के अंतर्गत ब्राह्मण द्वारा भौतिश गणना के आधार पर शिशु का नाम रखा जाता है. तथा बच्चे को शहद चटा कर सूर्य देव के दर्शन कराए जाते हैं. तत्पश्चात सभी व्यक्ति बालकों को उसके स्वास्थ्य और भविष्य सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं.
निष्क्रमण संस्कार
यह संस्कार शिशु के जन्म के चार मह बाद किया जाता है. जिसमें सूर्य एवं चंद्रमा ओ देवताओं की पूजा कर शिशु का उनके दर्शन करवाना इस संस्कार का अति मुख्य कर्म होता है. हमारा शरीर पंचतत्व अर्थात धरती अग्नि जल आकाश और वायु से बना है. इसलिए पिता इन देवी देवताओं से बच्चे का कल्याण की प्रार्थना करता है क्योंकि बालक एवं बालिका पर इनकी कृपा हमेशा बनी रहे.
अन्नप्राशन संस्कार
माता के गर्भ में रहते हुए शिशु के पेट में कुछ गंदगी चली जाती है. जिससे शिशु के अंदर कुछ दोष उत्पन्न हो जाते हैं परंतु अन्नप्राशन संस्कार के माध्यम से उन सभी दोषों का नाश हो जाता है. जब बच्चा 6 महीने का हो जाता है तो उसके दांत निकलने शुरू हो जाते हैं और धीरे-धीरे उसके पाचन शक्ति भी तेज होने लगती है. तब इस संस्कार को किया जाता है इस संस्कार में शुभ मुहूर्त में देवी देवता की पूजा कर माता-पिता सोने व चांदी के चम्मच से मंत्र उच्चारण करते हुए शिशु को खीर चटाते हैं.
मुंडन संस्कार
शिशु के आयु के पहले या तीसरे या पांचवा या सातवें वर्ष पूर्ण होने पर बच्चे के बाल उतारे जाते हैं. इसी प्रतिक्रिया को मुंडन संस्कार कहा जाता है. इसके बाद शिशु के सर पर दही मक्खन आदि लगाकर स्नान करवाया जाता है. वह अन्य मांगलिक क्रियाओं भी किया जाता है इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य शिशु शिशु का बल आयु और वृद्धि के अंदर वृद्धि करना होता है.
कर्णविधान संस्कार
इस संस्कार के अंतर्गत शिशु के कान को छेदा जाता है. इसी वजह से इस संस्कार को करणविधान संस्कार कहा जाता है यह संस्कार शिशु के जन्म के 6 माह से लेकर 5 वर्ष के बीच में किया जा सकता है.
ऐसा माना जाता है कि जब सूर्य की किरण है कानों के चित्र से होकर गुजरती है तो इस क्रिया द्वारा बालक और बालिका में पवित्रता आ जाती है. और वह सूर्य भगवान के तेजस्वी हो जाते हैं.
उपनयन संस्कार
उप अर्थात पास और नयन मतलब ले जाना अर्थात गुरु के पास ले जाना इसी प्रतिक्रिया को उपनयन संस्कार कहा जाता है. इस संस्कार के अनुसार बालक को विधिवत रूप से जनेऊ धारण करवाया जाता है. जिलों में 3 सूत्र होते हैं जिनमें ब्रह्मा विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं इस संस्कार के माध्यम से बालक और बालिका को गायत्री मंत्र का जप वेदों का अध्ययन आदि करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है.
विद्यारंभ संस्कार
उपनयन संस्कार पूर्ण होने के बाद बालक अथवा बालिका को वेद का अध्ययन करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है. इस संस्कार का शुभ मुहूर्त देखकर बालक की शिक्षा को प्रारंभ किया जाता है इसे ही विद्यारंभ संस्कार भी कहा जाता है.
इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य ज्ञान की प्राप्त करना होता है. इस संस्कार के बाद बालक को गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण के लिए भेज दिया जाता था वहां पर वह अपने गुरु के संरक्षण में वेदो अन्य शास्त्रों का ज्ञान अध्ययन करता था.
केशांत संस्कार
केशांत संस्कार का अर्थ होता है बालों का अंत करना उसकी समाप्ति करना व विद्यारंभ से पूर्व मुंडन किया जाता है. विद्यारंभ संस्कार में बालक गुरुकुल में रहते हुए वेद का अध्ययन करता है.
उस समय से वह पूर्ण रुप से ब्रह्मचर्य का पालन करता है तथा उसके लिए पूर्ण रूप से मुंडन वह जनेऊ का प्रावधान है. पढ़ाई पूर्ण होने के बाद गुरुकुल में ही केशांत संस्कार किया जाता है. यह संस्कार सूर्य देव के उत्तरण होने के पश्चात ही किया जाता है अन्य शास्त्रों में इसे गोदान संस्कार भी कहा गया है.
समावर्तन संस्कार
समावर्तन का अर्थ है दोबारा लौटना. समावर्तन विद्या अध्ययन का अंतिम संस्कार होता है. पढ़ाई पूर्ण हो जाने के तत्पश्चात ब्रह्मचारी अपने गुरु की आज्ञा से अपने घर की तरफ लौटता है इसलिए समावर्तन संस्कार कहा जाता है.
इस संस्कार में वेद मंत्र से अभिव्यक्त जल से भरे हुए 8 कलस से विधिपूर्वक ब्रह्मचार्य को स्नान करवाया जाता है. इसलिए इसे वेद स्नान संस्कार भी कहा जाता है. इस संस्कार के बाद ब्रह्मचारी अपने गृह जीवन में प्रवेश करने की अधिकार प्राप्त कर लेता है.
विवाह संस्करण
वि यानी विशेष रूप से वाहन यानी ले जाना विवाह का अर्थ होता है. पुरुष द्वारा स्त्री को विशेष रूप से अपने समक्ष घर ले जाना. सनातन धर्म में विवाह को जन्म जन्म का स्थानांतरण माना गया है यह धर्म का साधन है. विवाह के बाद पति पत्नी साथ धर्म के पालन करते हुए जीवन को यापन करते हैं. विवाह के द्वारा सृष्टि के विकास में योगदान दिया जाता है इसी से मनुष्य पित्र रेंज से मुक्त हो जाता है.
विवाह अग्नि संस्कार
विवाह के दौरान होम आदि क्रियाएं जिस अग्नि द्वारा की जाती है. उस अग्नि को आवश्तक अग्नि कहा जाता है. विवाह के बाद वर वधु उस अग्नि को अपने साथ लेकर घर आते हैं और किसी पवित्र स्थान पर स्थापित करते हैं और प्रतिदिन अपने कुल के परंपराओं के अनुसार सुबह शाम हवन करते हैं.
अंत्येष्टि संस्कार
अंत्येष्टि का अर्थ है अंतिम समय आज भी शव यात्रा के आगे घर से अग्नि जलाकर ले जाई जाती है. इसी के द्वारा चिता जलाई जाती है यह वही अग्नि है जो दंपति विवाह के बाद अपने यहां स्थापित करता है. और इसी से ही उनके अंतिम चलाई जाती है इसी संस्कार के बाद व्यक्ति अग्नि से होम हो जाता है.
चीन में हिन्दू धर्म

दुनिया में लगातार कई बुद्धिजीवी कई विचारक इस बात को शुरू से ही मानते आ रहे हैं कि दुनिया का सबसे प्राचीनतम और वैज्ञानिक धर्म है. हिंदू धर्म आज की परिस्थितियां इस बात को साबित भी करती रहती हैं. चीन के लोग आज वैदिक रीति रिवाज अपना रही हैं.
अंतिम संस्कार के लिए शव को जलाने का रीति रिवाज बढ़ता जा रहा है. चीन में सनातन धर्म का सबूत हजारों वर्षों से भी ज्यादा ही पुराने हैं मगर यह देश धीरे-धीरे एक नास्तिक देश बन गया और आज चीन दुनिया का सबसे बड़ा नास्तिक देश माना जाता है.
चीन जहां पर इस्लाम को मानसिक बीमारी और ईसाइयत को बड़ा खतरा घोषित किया हुआ है और मस्जिद और चर्च में सरकार ताले भी लगवा रही है. वहीं दूसरी तरफ चीन के लोगों में बदलाव और शांति के लिए सनातन धर्म चरण धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन के तमाम शहरों में लोग लोगों को भी तेजी से अपना रहे हैं. और योग के साथ साथ ही चीन के लोग अपने जीवन में बदलाव और मानसिक शांति के लिए सनातन धर्म के अन्य रीति-रिवाजों को भी अपना रहे हैं.
चीन धर्म में सनातन धर्म अपनाने पर कोई रोक नहीं है. चीन में लोग बड़े पैमाने पर योग के अलावा पूजा क्रियाकलाप भी सीख रहे हैं और पूजा पाठ कर भी रहे हैं. चीनी लोग इसके साथ साथ हाथ में कलावा बांधने माथे पर तिलक के लेप जैसे सनातन धर्मों को भी सीख रहे हैं और लोग अपने रोजमर्रा जीवन में इसको अपना भी रहे हैं. अब चीन कि सरकारों ने शवों को दफनाने की जगह उन्हें जलाने का भी कानून बनाना शुरू कर दिया.
इसमें सरकार कोरोनावायरस से पीड़ित होकर मरने वाले व्यक्ति को दफनाने की जगह उन्हें जलाकर अंतिम संस्कार करने का कानून बनाया है. चीनी सरकार का यह दावा है कि शव को दफनाने से बीमारी खत्म नहीं होती बैक्टीरिया शरीर से जमीन में आ जाते हैं और बीमार इलाकों में बनी रहती है. जलाने से ही बैक्टीरिया खत्म होते हैं अंतिम संस्कारों के लिए जलाने पर जोर ज्यादा दिया जाए ऐसा कहना चीन की सरकारों का है.
सनातन और हिन्दू धर्म में अंतर

सनातन हिंदू धर्म में अंतर करने से पहले हम आपको बता देंगे की सनातन धर्म जैसी कोई चीज नहीं है. सनातन संस्कृति है और हिंदू धर्म है संस्कृति और धर्म के बीच अंतर होता है. संस्कृति जो होती है वह स्वाभाविक रूप से व्यक्ति के साथ पैदा होती है जिसे हम कहते हैं कल्चर हमारे पूर्वज पैदा हुए. उन्होंने अपने को सुरक्षित करने के लिए अपने को विकसित करने के लिए अपने को विद्यमान बनाने के लिए.
जिस जीवन शैली को अपनाया वह जीवन शैली सनातन जीवन शैली है और समाज में जब वह विकसित हो गए उनका धीरे-धीरे विकास हो गया और विकसित होने के बाद अब उन्होंने सामाजिक संरचना करनी शुरू की परिवार बना परिवार से गांव बने गांव से शहर बने शहर से बड़े-बड़े नगर जिसे आप कहते हैं बड़े-बड़े महानगर बने फिर उससे प्रदेश बने प्रदेशों से फिर देश बने.
जब इस तरीके से सामाजिक संरचना बनी तो उस सामाजिक संरचना को नियंत्रित करने के लिए जिन नियमों के समूह को समाज में स्वीकृति दे दी या समाज में धारण कर लिया वह धर्म है. तो हिंदू समाज ने जिन सामाजिक नियमों को धारण कर लिया अपने सामाजिक व्यवस्था को चलाने के लिए.
वह हिंदु था इसलिए यदि किसी व्यक्ति को विकसित करना है तो आपको सनातन संस्कृति को अपनाना चाहिए रखना पड़ेगा बिना सनातन संस्कृति को अपनाएं किसी भी तरह से कोई भी जीवन शैली विकसित नहीं हो सकती लेकिन यदि समाज को रेगुलेट करना है.
यदि समाज को चलाना है तो सनातन जीवन शैली के साथ में सनातन धर्म की जगह पर हिंदू धर्म मतलब कि सनातन के साथ जो धर्म वर्ड यूज़ किया गया है. यह गलत है धर्म इस्लाम भी है धर्म इस आईडी है धर्म यहूदी भी है लोग कहते हैं यह पंत है संप्रदाय है. यह सब गलत कहते हैं सब धर्म है क्योंकि वह जिस जीवन शैली को जीते हैं उस जीवन शैली के जीवन जीने में उनके समाज में जिन नियमों के समूह को धारण कर लिया वह उनका धर्म है.
ईसाइयों ने जिस नियमों को धारण कर लिया उनके समाज ने हुए ईसाई धर्म हो गया. यहूदी ने अपने समाज को रेगुलेट करने के लिए जिन नियमों को धारण कर लिया वह यहूदी धर्म कहलाया. इस्लाम ने मुसलमानों ने जिन नियमों को अपने समाज में रेगुलेट करने के लिए धारण कर लिया वह इस्लाम धर्म कहलाया. हिंदू ने अपने समाज को चलाने के लिए जिन नियमों को धारण कर लिया वह हिंदू धर्म हो गया.
लेकिन इसके बाद भी सनातन जीवन शैली के बिना ना इस्लाम रहेगा ना यहूदी रहेगा ना क्रिश्चियन क्रिश्चन रहेगा और ना हिंदू, हिंदू रहेगा. आज समस्या पैदा हो रही है वह यही हो रही है लोग धर्म तक ही देख पा रहे हैं. जीवन शैली तक देखी नहीं रहे हैं कि लोग धर्म तक ही देख पा रहे हैं. जीवन शैली तक देखी नहीं रहे दुनिया के किसी भी धर्म में किसी भी व्यक्ति को किसी दूसरे को पीड़ा देने की हत्या देने की किसी भी दूसरे का संपत्ति हरण कर लेने का किसी भी बहू बेटी छीन लेने का अधिकार.
यह सारी चीजें धर्म को चलाने वाले लोग अपने तरीके से समाज से करवाते हैं. लेकिन दया प्रेम उदारता करुणा स्नेह सहयोग सहकारिता यह सारे शब्द ऐसे हैं जो किसी भी धर्म की जीवन शैली के जीने वाले सामाजिक व्यवस्था को चलाने के लिए परम आवश्यक है. ऐसा कोई समाज इस पृथ्वी पर नहीं है जहां पर सनातन जीवन शैली अलग हटकर कोई भी समाज सरवाइव कर सकता हो सर्वे भवंतु सुखना सर्वे संतुले ईश्वर सभी लोग सुखी हो और सभी लोग निरोगी हो.
धर्म में अंधविश्वास
उत्तर की ओर सोने के नुकसान:-
अक्सर इस बात को अंधविश्वास का थप्पा दिया गया की उत्तर की दिशा में सोने से मनुष्य का जीवन अल्प यानी कम हो जाता है. इंसान को उत्तर की ओर नहीं सोना चाहिए यह बात जब तक ऋषि मुनि कहते रहे.
तब तक किसी ने नहीं माना लेकिन जब इस बात को साइंस की दृष्टि से देखा गया तो पता चला कि मनुष्य या यूं कहें कि संसार सभी चीजें मैग्नेटिक फील्ड से बंधी हुई है. और उस से निर्मित भी हुई है और मानव शरीर का उत्तरी भाग यानी उसका सर यानी मस्तिक होती है.
जब धरती का उत्तरी भाग दोनों एक ही दिशा में होंगे ऐसे में साइंस का सिद्धांत कहता है कि सेन पोल यानी एक जैसे दो ध्रुव अगर सामने आ जाए तो वह एक दूसरे से भागते हैं. अब यदि शरीर उसी दिशा में रहेगा तो मैग्नेटिक फील्ड का असर कहीं तो पड़ेगा ही ऐसे में स्वाभाविक रूप से आपके शरीर पर इसका असर पड़ता है. जिससे सर दर्द और दिल की बीमारियां होती है और जीवन काल में एक ना दिखने वाला असर पड़ता है.
दरवाजे पर नींबू मिर्ची लटकाना:-
इसी तरह निंबू मिर्ची है जिन्हें दरवाजे पर लटकाने से बुरी नजर काली शक्ति का सर्वनाश होता है. ऐसी मान्यता है इन मान्यताओं को खास सिर्फ हिंदू धर्म से जुड़ा जाता है. अब यह स्वभाविक है जब इस धर्म को मानने वाले लोग इस क्रिया को करते हैं तो इनकी जिम्मेदारी इसी धर्म और इसका धर्म प्रचारक सदियों से करते आ रहे ऋषि-मुनियों को लेनी चाहिए.
लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा हमारे पूर्वज निंबू मिर्ची की क्रिया को बुरी नजर के चलते नहीं बल्कि इसके सेवन से होने वाली मनुष्य के फायदे के लिए करते थे. नींबू और मिर्ची का एक साथ सेवन शरीर से जुड़े अनगिनत रोगों को दूर करता है इसलिए इसे किसी जमाने में रस्सी से लटका दिया था. जिससे कि इसे देख देखकर सेवन से भी नहीं चुकेगा.
टूटा हुआ शीशा:-
हिंदू धर्म से एक और बिना सर पैर का अंधविश्वास जोड़ा गया की शीशे के टूटने से 7 सालों का बेड लक यानी दुर्भाग्य उत्पन्न होता है और इसका सबसे बड़ा शहर शीशा तोड़ने वाले या फिर जिसे गलती हुई है उस पर पड़ता है.
उसकी हर कामना हर चीज अधूरी रह जाती है. उसका कोई भी काम या तो बनता नहीं है या तो बनते बनते ही बिगड़ जाता है. कई लोग अंधविश्वास में फंस कर आज तक इसे मानते हैं और यह रीत लाखों लोगों के बीच काफी प्रचलित है.
खैर इसे जो मानता है यह उसका अधिकार है और विश्वास है लेकिन इस बात पर किसी विशेष धर्म की बात उत्पन्न होती है तो उसके मानने वाले को यह समझना होगा कि इसके पीछे का आखिर सच क्या होगा’ क्योंकि यह रीत युगो युगो से चली आ रही है. जहां इंसान शीशे से सावधान रहता है दरअसल बात यह है कि किसी जमाने में सीखें होना भी एक लग्जरी होता था.
हर कोई अपने पास नहीं रख सकता था आज के दौर में ऐसे हर कोई गाड़ी नहीं रख सकता बिल्कुल ऐसा ही जब एक आदमी के पास ऐसा होता था. उस पर ध्यान अपनी जान से भी ज्यादा देना पड़ता था ऐसे में भ्रम फैला दिया गया कि शीशा तोड़ने वाले कि जिंदगी 7 साल के लिए बर्बाद हो सकती है फिर क्या जिस चीज की हिफाजत सावधानी से करनी चाहिए थी. अब उसी वस्तु की रक्षा अंधविश्वास करने लगा.
मासिक धर्म:-
किसी जमाने में औरतों को मासिक धर्म के दौरान बिल्कुल अकेला और तन्हा रहना पड़ता था हर दिनों इन्हें समाज से हटकर करना पड़ता था. लेकिन समय बदला लोगों ने इसका विरोध किया यह प्रथा धीरे-धीरे खत्म होने लगी सेनेटरी पैड के बाद इस मुश्किल का हल निकल आया. जिससे औरतें बेझिझक कहीं भी आने-जाने लगी यह जो बदलाव बढ़िया था और यह बदलाव प्रशंसनीय था.
लेकिन इस प्रथा को खत्म होते होते धर्म को नकारात्मक दृष्टि से देखा गया. लोगों को यह भ्रम दिया गया कि यह एक अंधविश्वास है. जहां औरतों को समाज से काट देना वह भी ऐसे मुश्किल दिनों में यह सरासर कुप्रथा का ही हिस्सा है लेकिन जब यह मॉडर्न जमाने में साइंस को यह बात पता चला कि मासिक धर्म के अवस्था में औरतें इस परेशानी और तकलीफ से गुजरती है. तब जाकर लोगों ने जाना आखिर उस समय ऐसा क्यों किया जाता था.
जब पीने का पानी कोस दूर से भरकर लाया जाता था खाने के लिए चूल्हे का प्रयोग होता था. सभी काम औरतो के हुआ करते थे तो सोचिए औरतो कौ उन मुश्किल दिनों में समाज से दूर रहने में उनकी भलाई थी या फिर यह कोई अंधविश्वास ही था खुद तय कीजिए.
हिन्दू धर्म vs बौद्ध धर्म
हिंदू धर्म प्राचीन समय से ही चलती आ रही है और लोग इसका पालन भी करते हैं तो आखिर ऐसी क्या वजह थी. आखिर ऐसी क्या वजह रही जिसकी वजह से बौद्ध धर्म का जन्म हुआ क्या खामियां रही आज हम इन दोनों धर्मों के बीच की खामियां तथा उसके सैद्धांतिक विचारों का वर्णन करेंगे.
जैसा कि हमें पता ही है हिंदू धर्म मूर्ति पूजा पर विश्वास रखती हैं तथा इस धर्म में काफी ऐसी बातें भी हैं जिसे समाज ने धीरे-धीरे करके निकाल फेंकने की सूची दरअसल इस धर्म में सकारात्मक के साथ नकारात्मक और आडंबर भरे हुए थे. जिस की श्रेणी में लोग रहना पसंद करना नहीं चाहते थे उन्होंने धीरे-धीरे हिंदू धर्म का त्याग करना शुरू कर दिया और अन्य धर्मों का पालन करने लगे.
जिसमें से एक धर्म था बौद्ध धर्म इस धर्म की उत्पत्ति होने का एक मेन वजह यह थी कि इस धर्म में किसी आडंबर विचारों के ऊपर ध्यान नहीं दिया गया था. तथा सभी धर्मों के मूल मंत्र सिद्धांत पर जोर दिया गया हम आपको बता दें कि इस धर्म के संस्थापक गौतम बुध थे.
जिन्होंने समाज में रहकर सारे नकारात्मक सोच को उखाड़ कर फेंक देने की सूची. उनका कहना था कि हम मनुष्य एक ही हैं फिर भी हमारे साथ इतना भेदभाव क्यों वह चाहते थे कि जो पंडित है उनके पास ज्ञान था या ना था लेकिन उनके बच्चे पंडित कहलाते थे.
उनके बच्चे के बच्चे पंडित कहलाते थे और यही हाल उन दलित वर्गों का भी था जिनके अगली पीढ़ी कर्म के सिद्धांत पर नहीं बल्कि जातिगत सिद्धांत पर चलती थी. गौतम बुद्ध ने किसी भी मूर्ति पूजा पर विश्वास नहीं रखा तथा उन्होंने बताया कि मनुष्य दुखों का कारण है तथा हम ईश्वर की प्राप्ति अष्ट मार्ग द्वारा कर सकते हैं. दोस्तों यह थे अष्ट मार्ग थे यह जटिल धर्म पर आधारित नहीं थे बल्कि मूल नैतिक कर्मों पर आधारित था.
यह पूजा पाठ में विश्वास नहीं रखते थे जबकि हिंदू धर्म में मूर्ति पूजा पर ही जोड़ दिया था. गौतम बुध का कहना था कि ईश्वर हर कण-कण में विद्यमान है उसका कोई आकार नहीं है वह हर मनुष्य के दिलों में विराजमान है. उन्होंने भगवान को प्रसन्न करने के लिए किसी प्रकार का बलिदान जरूरी नहीं है.
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