चाणक्य नीति अध्याय 3 अनमोल वचन | Chanakya quotes in Hindi Chapter 3
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तीसरे अध्याय की शुरूआत में चाणक्य कहते हैं कि दोष किसके कुल में नहीं है ऐसा कौन है जिसे दुख ने नहीं सताया अब गुण किसे नहीं है सदैव सुखी कौन रहता है, यह संसार दुखों का सागर है, इस संसार में एक जैसा व्यक्ति नहीं है जिसे दुख ना हुआ हो, सभी व्यक्ति में कुछ ना कुछ दुख रोग एवं अवगुण अथवा कुछ ना कुछ बुरी आदतें पाई जाती है. इस संसार में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो सदैव सुखी रहता है. हर इंसान को किसी न किसी तरह के संकटो का दुखी का रोगों का और बुरी आदतों का सामना करना ही पड़ता है. दुख और सुख तो साथ साथ लगे रहते हैं जैसे दिन और रात.
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आगे चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य का चरित्र उनके खानदान को बताता है भाषण अर्थात उसकी बोली से उसका देश का पैसा चलता है. विशेष आदर्श सत्कार से उसके प्रेम भाव का तथा उसके शरीर से उसके भोजन का पता चलता है.
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आगे श्री चाणक्य समझाते हैं की कन्या का विवाह अच्छे कुल में करना चाहिए पुत्र को विद्या के साथ जोड़ना चाहिए दुश्मन को विपत्ति में डालना चाहिए और मित्र को अच्छे कार्य में लगाना चाहिए.
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श्री चाणक्य समझाते हैं कि अपनी पुत्री का विवाह वर पक्ष के खानदान को अच्छी तरह परख कर ही करना चाहिए. वह अपने पुत्र को अच्छी और उच्च शिक्षा प्रदान करना चाहिए यदि शत्रु निकट आ जाए उसे विपत्ति में डाल दें और अपने प्रिय मित्र को हमेशा अच्छे और महत्वपूर्ण कार्य में लगाकर रखें.
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आगे समझाते हैं कि दुर्जन और सर्प के सामने आने पर सर्प का वरण करना उचित है ना की दुर्जन का क्योंकि सर्प तो सिर्फ एक ही डसता है लेकिन दुर्जन व्यक्ति आपको कदम कदम पर बार बार डस्ता रहता है इसलिए इस बात का हमेशा ध्यान रखें. राजा खानदानी लोगों को ही अपने पास एकत्रित करता है क्योंकि कुलीन अर्थात अच्छे खानदान वाले लोग प्रारंभ में और मध्य में अंत में राजा को किसी भी दिशा में नहीं त्याग ते हैं.
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चाणक्य समझाते हैं कि मूर्ख व्यक्ति से हमेशा बचना चाहिए तथा प्रत्यक्ष में दो पैरों वाला पशु है इस प्रकार बिना आंख वाले अर्थात अंधे व्यक्ति को कांटे भेदेते हैं इसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति अपने कटु वह अज्ञान से भरे वचनों से हमें भेदेता रहता है. रूप और यौवन से संपन्न तथा उच्च कुल में जन्म लेने वाला व्यक्ति यदि विद्या से रहित है तो वह बिना सुगंध के फूल के भाती शोभा नहीं पता है भाव यही है कि आदमी की शोभा उसके सुंदर रूप योवन या उच्च कुल में जन्म लेने से नहीं होता है.
उसकी शोभा उसके ज्ञान से होती है कोयल की शोभा उसके स्वर में है स्त्रियों के शोभा उनके पतिव्रत धर्म है गुरु व्यक्ति के स्वभाव उनके ज्ञान में होती है और तपस्वी की शोभा उनके क्षमा में है. यदि एक व्यक्ति को त्यागने से पूरे कुल की सुरक्षा होती है. तो उस एक व्यक्ति को छोड़ देना चाहिए पूरे गांव के भलाई के लिए कुल को तथा देश के भलाई के लिए एक गांव को और अपने आत्म सम्मान की रक्षा के लिए सारी पृथ्वी को छोड़ देना चाहिए.
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आगे श्री चाणक्य कहते हैं कि उद्योग धंधा करने पर निर्धनता कभी नहीं रहती है प्रभु के नाम झपने पर पाप नष्ट हो जाते हैं चुप रहने अर्थात सहनशीलता रखने पर लड़ाई झगड़े नहीं होते हैं. जो जागता रहता है अर्थात सदैव सजग रहते हैं उसे कभी भी किसी भी चीज का भय नहीं सताता है.
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आगे चाणक्य समझाते हैं कि अति सुंदर होने के कारण सीता का हरण हुआ अत्यंत अहंकार के कारण रावण का वध हुआ अत्यधिक दान के कारण राजावली बांधा गया अर्थात सभी के लिए ठीक नहीं होती है इसलिए हमें किसी भी चीज में अति नहीं करना चाहिए हर चीज की एक सीमा होती है मर्यादा होती है सीमा से बाहर जाने पर प्राय नुकसान होता है.
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आगे चाणक्य समझाते हैं की सामर्थ को भार कैसा व्यवसाय के लिए कोई स्थान दूर किया विद्वान के लिए विदेश कैसे और मधुर वचन बोलने वाले के लिए शत्रु कौन अर्थात जो व्यक्ति समर्थ हैं उसे कोई भी काम सहज ही लगेगा उसे कोई भी कार्य भारस्वरूप नहीं लगेगा. व्यवसाय व्यक्ति अपने व्यवसाय के लिए कहीं पर जा सकते हैं वह स्थान की दूरी को कभी नहीं दिखता है वह अपने लाभ को देखता है इसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति के लिए विदेशों में भी लाखों मित्र हो सकते हैं और यदि कोई व्यक्ति मीठा बोलता है अच्छा वाणी में बोलता है तो उसके कोई शत्रु नहीं होते हैं.
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आगे समझाते हैं कि एक ही सुगंध वाले वृक्ष से जिस प्रकार सारा वन सुगंधित हो जाता है उस प्रकार एक सुपुत्र से सारा कुल शोभित हो जाते हैं अच्छे गुण सभी जगह प्रशंसनीय होते हैं उनकी लो प्रसिद्धि सुगंधित पुष्प की भांति होती है जो सभी जगह फैल जाती हैं किसी एक कुल का सुपुत्र सारे कुल को सम्मानित कर देते हैं.
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आगे कहते हैं कि आग से जले सूखे वृक्ष से सारा वन जल जाता है जैसे कि एक कुपुत्र से सारे कुल का नाश हो जाता है कुल का नाश करने के लिए एक ही कुपुत्र काफी होता है ठीक उसी प्रकार जैसे एक जलता हुआ वृक्ष पूरे वन को जलाकर खाक कर देता है आगे चाणक्य कहते हैं की शौक और दुख देने वाले बहुत से पुत्रों को पैदा करने से क्या लाभ है कुल को आश्चर्य देने वाला एक ही पुत्र सबसे अच्छा होता है जैसे महाभारत में धृतराष्ट्र के 100 पुत्र थे पर सभी ने उन्हें दुखी पहुंचाया वह सभी महाभारत युद्ध के कारण बने जबकि पांच पांडवों ने धर्म के मार्ग पर चलकर विजय प्राप्त की और वंश का नाम सुशोभित किया.
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आगे समझाते हैं कि पुत्र से 5 वर्ष तक प्यार करना चाहिए उसके बाद 10 वर्ष तक उसे डंड आदि देते हुए अच्छे कार्य की ओर लगाना चाहिए सोलवा साल आने पर मित्र जैसा व्यवहार करना चाहिए संसार में जो कुछ भी भला बुरा है उसे उस का ज्ञान कराना चाहिए इस प्रकार एक पिता अपने पुत्र के जीवन को भले बाती सवार सकता है तथा उसे गलत मार्ग पर पढ़ने से रोक सकता है.
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आगे चाणक्य समझाते हैं कि देश में भयानक ऊपद्र होने पर शत्रु के आक्रमण के समय पर भयानक अकाल के समय दुष्ट का साथ होने पर जो भाग जाते हैं वही जीवित रहता है मतलब समझने का तात्पर्य यह है की ऐसी कंडीशन आपके लाइफ में आती है तो उस कंडीशन में भागना ही सही होगा जिनके पास धर्म अर्थ काम मोक्ष इनमें से कुछ भी नहीं हो पाता है उसका जन्म लेने का फल केवल मृत्यु ही होता है.
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आगे चाणक्य समझाते हैं कि जहां मूर्खों का सम्मान नहीं होता है जहां अन्य भंडार सुरक्षित रहता है जहां पति पत्नी में कभी झगड़े नहीं होते वहां लक्ष्मी निवास करती हैं भाव यह है कि जिस देश में मूर्खों की जगह विद्यमान का सम्मान होता है. जहां समुचित अन भंडार रहता है जहां घर गृहस्ती और परिवार में प्यार बना रहता है वहां पर सुख और समृद्धि बराबर बनी रहती है.
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