चाणक्य नीति अध्याय 9 अनमोल वचन | Chanakya quotes in Hindi Chapter 9
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नोवे अध्याय के आरंभ में श्री चाणक्य कहते हैं यदि मुक्ति चाहते हो तो समस्त विषय वासनाओं को विष के समान छोड़ दो क्षमाशीलता नम्रता दया पवित्रता और सत्यता को अमृत के भाती पियो अर्थात अपनी जिंदगी में उसे अपनाओ आगे समझाते हैं कि जो व्यक्ति परस्पर किए गए गुप्त बातों को दूसरों से कह देते हैं वही दीमक के घर में रहने वाले सांप की भांति नष्ट हो जाते हैं इसलिए मित्रों गुप्त रहस्य को कभी भी प्रकट ना करें इससे केवल शत्रुता ही पैदा होती है
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आगे श्री चाणक्य कहते हैं कि ब्रह्मा जी को शायद कोई बताने वाला नहीं मिला जोकि उन्होंने सोने में सुगंध गन्ने में ईख में फल चंदन में फूल विद्वानों को धनी और राजा को चिरंजीवी भी नहीं बनाया समझाने का तात्पर्य यह है इस सृष्टि कर्ता ने यह कैसी विडंबना की है कि उन्होंने सोने में सुगंध नहीं डाली गन्ने पर फल नहीं लगाया चंदन के वृक्ष पर फूल नहीं उगाया और विद्वान को धन्यवाद नहीं बनाया और उसके बाद राजा को जो कि सबका प्रजा पालक है उसे दिलीप जी भी नहीं बनाया है
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चाणक्य कहते हैं कि अमृत से जीवन को अमरता प्राप्त होती हैं भोजन से शरीर को पुष्टि मिलती है तड़पती प्राप्त होती है और आंखों के बिना सारा संसार ही अंधकार में डूब जाता है और दिमाग के बिना तो चिंतान हीं असंभव है
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चाणक्य कहते हैं कि ना तो आकाश में कोई दूथ गया ना इस संबंध में किसी से कोई बात हुई ना पहले किसी ने बनाया और ना ही इसका प्रकरण सामने आया तभी आकाश में भ्रमण करने वाले चंद्र और सूर्य में ग्रहण के बारे में जो ब्रह्मांड पहले से ही जान लेता है वह विद्यमान क्यों नहीं है अर्थात वास्तव में वह विद्यमान है जिसकी गणना से ग्रहों की चाल का सही-सही पता लगाया जा रहा है
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आगे चाणक्य ने बहुत ही अच्छी बात समझाई है कि विद्यार्थी नौकर पथिक भूख से व्याकुल व्यक्ति भर से ट्रस्ट भंडारी और द्वारपाल इन सातों को यदि आप सोता हुआ देखले तो तत्काल जगा ले क्योंकि अपने समस्त कार्य को कर्तव्य का पालन यह जागकर ही या फिर सचेत रहकर ही करते हैं अर्थात विद्यार्थी भी सोएगा तो पड़ेगा कैसे नौकर यदि सोएगा तो डाका पड़ सकता है मुसाफिर यदि सोएगा तो उसे कोई लूट सकता है भंडारकर को स्वामी और द्वारपाल यदि सोते रहेंगे तो चोरों को चोरी करने का अवसर मिल सकता है अतः इन्हें सदैव सावधान रहना चाहिए
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इसके बाद चाणक्य कहते हैं कि सांप राजा शेर ततैया और बालक और दूसरे का कुत्ता तथा मूर्ख व्यक्ति इन सातों को सोने से कभी नहीं जगाना चाहिए इसे जगाने से हानि भी हो सकती है आगे कहते हैं कि जो ब्राह्मण जो धन के लिए केवल अपनी विद्या को बेचते हैं ऐसे ब्राह्मणों की विद्या उस सर्प की भांति होते हैं जिसकी मुख्य में विश की थैली ही नहीं है अर्थात यह ना तो किसी को श्राप दे सकते हैं और ना ही वरदान
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आगे समझाते हैं कि जिसके नाराज होने का डर नहीं और प्रसन्न होने से कोई लाभ नहीं जिसे दंड देने यह दया करने का सामर्थ्य ही नहीं है वह नाराज होकर भी क्या कर सकता है भयभीत उसी से हुआ जा सकता है जिसमें कुछ दंड देने की सामर्थ हो जिसमें ऐसी सामर्थ्य नहीं है उस व्यक्ति से डर गया था अपना हानि या लाभ देखकर ही कोई किसी से प्रभावित होता है यह सीन सर्प को अपने फन को फैलाकर फूपकार करनी चाहिए जिसके ना होने पर से उसे दराना विषय चाहिए यदि विसलिंग सर्प ऐसा नहीं करेगा तो वह अपना बचाव नहीं कर पाएगा लोग उसे पत्थर मारेंगे तात्पर्य यह है कि राजा के पास शक्ति चाहे थोड़ी हो पर उसे अपनी शक्ति का दिखावा करके शत्रु को भयभीत अवश्य करते रहना चाहिए
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आगे श्री चाणक्य कहते हैं की जुआरी के कथा को महामारत की कथा से जोड़कर दिखाया है की राजनीतिक कार्य को जुए की लत से कितना भारी नुकसान उठाना पड़ता है इसी प्रसंग की कथा को रामायण से जोड़कर बताया गया है की पर स्त्री हरण से कितना बड़ा विनाश होने की संभावना रहती है और चोर की कथा को श्रीमद्भागवत से जोड़कर भगवान श्री कृष्ण की 16 हजार रानियों के रहते हुए भी इंद्रिय निग्रह की भावना का प्रतिपादन किया गया है.
भाव यह है कि बुद्धिमान व्यक्ति वही है जो पर स्त्री गमन से दूर रहता है और सदैव अपने इंद्रियों को संयम में रखने का प्रयत्न करता है आगे समझाते हैं कि अपने हाथों से गुथी माला अपने हाथों से घिसा चंदन और अपने हाथों से ही लिखा स्त्रोत्र इन सब को अपने ही कार्य में लगाने से देवताओं के राजा इंद्र की श्रीलक्ष्मी भी नष्ट हो जाती है
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आगे समझाते हैं कि दरिद्रता के समय धैर्य रखना उत्तम है मैले कपड़ों को साफ रखना उत्तम है घटिया अन का बना गरम भोजन भी अच्छा लगता है और क्रूर व्यक्ति के लिए अच्छे स्वभाव का होना श्रेष्ठ है भाव यह है कि दरिद्रता में यदि धैर्य रखा जाए तो दुख नहीं होता गरीब व्यक्ति धैर्य पूर्वक अपना समय गुजार लेता है फटे पुराने मैले कपड़ों को यदि साफ-सुथरा करके और उसे अच्छे प्रकार से सीखकर पहना जाए तो वह भी अच्छे लगते हैं ज्वार बाजरा ज्वार मक्का इनके जैसे अन्य की रोटी भी बना कर खाई जाए तो वह स्वादिष्ट लगती हैं और अच्छी शील स्वभाव व्यक्ति यदि क्रूर भी हो तो वह भी अच्छा लगता है यहां पर समाप्ति होती है नवे अध्याय की.
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