चाणक्य नीति अध्याय 8 अनमोल वचन | Chanakya quotes in Hindi Chapter 8
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आठवां अध्याय की शुरूआत में श्री चाणक्य कहते हैं कि निकृष्ट लोग सिर्फ धन की कामना करते हैं माध्यम लोग धन और यश दोनों की चाहत रखते हैं और उत्तम लोग केवल यश की चाहत रखते हैं क्योंकि मान सम्मान सभी प्रकार के धनो से श्रेष्ठ है. जिस जीवन में मनुष्य को मान सम्मान नहीं मिलता है वह जीवन धन से भरपूर होने पर भी व्यर्थ है. धर्म नष्ट हो जाता है परंतु आदमी का यश उसके मरने के बाद भी अमर रहता है.
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आगे समझाते हैं कि दीपक का प्रकाश अंधकार को खा जाता है और काली को पैदा करता है उसी तरह मनुष्य सदैव जैसा अन खाता है वैसे ही उसकी संतान होती है. यदि कोई पुरुष गलत कमाए गए धन का अन खाता है तो उसकी संतान भी उसी तरह के गलत कर्मों में लग जाएगी और यदि आदमी इमानदारी से कमाए गए अन को खाता है तो उसकी संतान भी ईमानदार होगी. इसलिए परिश्रम और इमानदारी से प्राप्त खाना ही श्रेष्ठ होता है.
Chanakya quotes 3
आगे समझाते हैं कि है बुद्धिमान पुरुष धन गुणवानो को ही दे अन्य को नहीं देखो समुद्र का जल मेघु के मुंह में जाकर सदैव मीठा हो जाता है और पृथ्वी के चर अचर जीवो को जीवन दान देकर भी कई करोड़ गुना होकर फिर से समुंदर में चला जाता है. दान की महिमा अपरंपार है परंतु दान उसी को देना चाहिए जो सुपात्र हो सुपात्र के पास दान दी गई वस्तु अथवा धन का समुचित उपयोग होगा. दुष्ट के पास जाकर दान की गई वस्तु का उपयोग स्वास्थ्य से प्रेरित होकर ही हो पाता है. बेगू के पास जाकर समुद्र का खारा पानी भी मीठा हो जाता है और करोड़ों जीवो की प्यास को बुझाता है और फिर से सागर में मिल जाता है.
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आगे समझाते हैं कि तेल लगाने पर चीता का धुआं लगने पर स्त्री संभोग करने पर बाल कटवाने पर मनुष्य तब तक चांडाल अथवा शुद्ध बना रहता है जब तक कि वह स्नान नहीं कर लेता इसलिए हमेशा ध्यान रखें कि इन चीजों के बाद हमेशा सबसे पहले स्नान करें अपच होने पर पानी दवा है अपाचने पर बल देने वाला है भोजन के समय थोड़ा-थोड़ा जल अमृत के समान है और भोजन के अंत में जहर के समान फल देता है इसलिए हमेशा ध्यान रखें कि भोजन के अंत में पानी ना पिए यह तो भोजन के दौरान थोड़ा-थोड़ा पानी पिए या फिर भोजन के समाप्त होने के आधे से 1 घंटे बाद पानी का सेवन करें.
बुढ़ापे में स्त्री का मर जाना बंधु के हाथों में धन का चला जाना और दूसरे के आश्रय पर भोजन का प्राप्त होना यह तीनों ही स्थितियां पुरुषों के लिए दुखदाई है यज्ञ ना करने वाले का वेद पढ़ना व्यर्थ है बिना दान के यज्ञ करना व्यर्थ है बिना भाव के सिद्धि कभी नहीं होती है इसलिए भाव अर्थात प्रेम ही सब में प्रधान है भाव के बिना कोई भी कार्य संपन्न नहीं होता अतः सभी कार्यों में आस्था जरूरी है शांति के बराबर दूसरा कोई तप नहीं है संतोष से बढ़कर कोई सुख नहीं है.
लालच से बड़ा कोई रोग नहीं है और दया से बड़ा कोई धर्म नहीं है कोई हमराज की मूर्ति है लालच नर्क में बहने वाली नदी है विद्या कामधेनु गाय है और संतोष इंद्र के नंदनवन जैसे सुख देने वाला है क्रोध आदमी को हमेशा मृत्यु की और धकेलता है लालच अनेक कष्टों को जन्म देता है विद्या मनवंचित फल देने वाली है और संतोष से आत्म सुख मिलता है गुण से रोक की शोभा होती है सील से कुल की सभा होती है सिद्धि से विद्या की शोभा होती है और भोग से धन की शोभा होती है यहां भोग से आशय यह है कि जब तक धन का उपयोग सकर्मक के लिए नहीं किया जाता तब तक धन की शोभा नहीं की जा सकती.
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आगे चाणक्य कहते हैं कि गुण हीन व्यक्ति की स्वतंत्रता व्यर्थ है दोहा वाले व्यक्ति का कुल नष्ट होने योग्य है यदि लक्ष्य की सिद्धि ना हो तो विद्या व्यर्थ है और जिस धन का सदुपयोग ना हो वह धन व्यर्थ है आगे श्री चाणक्य कहते हैं कि भूमि के भीतर प्रविष्ट हुआ जल ही पवित्र होता है वर्षा का अधिकांश जल तो वहकर नाली नदियों द्वारा समुंदर में चला जाता है जो जल बचा हुआ है कुआं तलाब नदियों मैं भूमि की स्रोत से आता रहता है
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आगे कहते हैं कि लोक से प्रेरित ब्राह्मण आदर का पात्र नहीं रहता है और महत्वाकांक्षा ना रखने वाला राजा आलसी और आक्रमण होकर नष्ट हो जाता है संकोच करने वाली वेश्या ग्राहकों को पसंद ना करने के कारण अपना धंधा चौपट कर लेती है और बेशर्म कुलीन स्त्री दूसरों का विषय वासना का शिकार होकर पतित हो जाती है संसार में विद्वान व्यक्ति की प्रशंसा होती है.
विद्वान व्यक्ति सभी जगह पूजे जाते हैं विद्या से ही सब कुछ मिलता है विद्या ही सब जगह पूजा जाता है जो व्यक्ति मांस मदिरा का सेवन करता है वह इस पृथ्वी पर बोझ है इसी प्रकार जो निरक्षर है वह भी पृथ्वी पर बोझ है इस प्रकार मनुष्य पशु रूपी भार से यह पृथ्वी हमेशा पीड़ित और दबी रहती है तो आप जिंदगी में कोशिश करें कि निरीक्षण ना बने अनपढ़ ना बने या फिर पड़े हुए अनपढ़ ना बने यह था अध्याय 8 अब हम बढ़ेंगे अध्ययनों 9 की.
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