चाणक्य नीति अध्याय 2 अनमोल वचन | Chanakya quotes in Hindi Chapter 2
Chanakya quotes 1
दूसरे अध्याय के शुरू में ही चाणक्य कहते हैं झूठ बोलना उतावलापन दिखाना छल कपट मूर्खता अत्यधिक लालच करना शुद्धता और दैनिता यह सभी प्रकार के दोष स्त्रियों में स्वाभाविक रूप से मिलते हैं स्त्रियों के विषय में चाणक्य की उपयुक्त धारण का कारण क्या रहा था. यह कहना तो कठिन है परंतु सभी स्त्रियों में यह स्वभाविक दुर्गुण हो यह संभव नहीं है. चाणक्य के काल में निश्चित रूप से महिलाओं के शिक्षण का अकाल रहा होगा इसी आधार पर चाणक्य ने स्त्री को मुर्ख लालची अशुद्ध रूडी छली आदि कहां होगा लेकिन दया हीनता की भावना स्त्री का स्वभाविक दोष नहीं माना जा सकता.
Chanakya quotes 2
चाणक्य कहते हैं कि भोजन करने तथा उसे अच्छी तरीके से पचाने की शक्तियों तथा अच्छा भोजन समय पर प्राप्त हो. प्रेम करने के लिए अर्थात उत्सुक प्रदान करने वाली उत्तम स्त्री के साथ संसर्ग हो, खूब सारा धन और उस धन को दान करने का उत्साह हो यह सारे सुख किसी तपस्या के फल के समान होते हैं.
अर्थात कठिन साधना के बाद ही यह शुभ प्राप्त होते हैं आगे कहते हैं कि जिस का पुत्र आज्ञाकारी हो स्त्री उनके अनुसार चलने वाली हो अर्थात पतिव्रता हो जो अपने पास धन से संतुष्ट रहता हो उसका स्वर्ग यहीं पर है और कहते हैं पुत्र वही है जो पिता भक्त हैं पिता वही है जो अपने बच्चों का लालन पोषण करता है मित्र वही है जिसमें पूर्ण विश्वास हो और स्त्री वही है जिससे परिवार में सुख समृद्धि स्थापित हो जो मित्र प्रत्यक्ष रूप से मधुर वचन बोलता हो और पीठ पीछे अर्थ अप्रत्यक्ष रुप से आपके सारे कार्यों में बाधा अटकाता हो ऐसे मित्रों को उस घड़ों के समान त्याग देना चाहिए.
जिसके भीतर विश भरा हो ऊपर मुंह के पास दूध भरा हो बुरे मित्रों पर और अपने मित्र पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि कभी नाराज होने पर संभवत आपका विशेष मित्र भी सारे रहस्य को बाहर जाकर प्रकट कर सकता है मन में विचार गए कार्यों को कभी भी किसी के सामने नहीं करना चाहिए अपितु उन्हें मंत्र की तरह रक्षित करके उन्हें मतलब सूचित हुए कार्य को करते रहना चाहिए निश्चित रूप से मूर्खता दुखदाई है ओर योवन भी दुख देने वाले परंतु कष्टों में भी बड़ा कष्ट दूसरों के घर पर रहना होता है निश्चित रूप से मूर्ख व्यक्ति का समाज में कोई सामान नहीं है.
विवेक हीन व्यक्ति को वक्त पर अपमानित होना पड़ता है और परिहास का पात्र बनना पड़ता है.इसी प्रकार से योवन के आने पर भी आदमी कभी कभी अपना विवेक और आपा खो देता है जवानी में आदमी का जोश और उसका तो खूब चढ़ा होता है पर वह अपना होश भी कोई रहता है उसमें अपनी शक्ति का अहम इस प्रकार बढ़ जाता है कि उसे अपने सामने वाला व्यक्ति तुच्छ दिखाई देने लगता है.
Chanakya quotes 3
चाणक्य का कहना है कि किसी को विवशता में दूसरे के घर पर निर्भर रहना पड़े तो उसका अपना वर्चस्व समाप्त हो जाता है उसे दूसरे की कृपा पर निर्भर रहना पड़ता है उसकी स्वाधीनता नष्ट हो जाती है और यही उसके दुखों का सबसे बड़ा कारण होता है.
Chanakya quotes 4
आगे चाणक्य कहते हैं कि हर एक पर्वत में मणि नहीं होती और हर हाथी में मुक्ता मणि नहीं होती है और साधु लोग हर जगह नहीं मिलते और हर एक वन में चंदन के वृक्ष नहीं होते हैं यहां हमें समझाते हुए कह रहे हैं की अच्छी चीजें सभी जगह प्राप्त नहीं होती पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य खनिज पदार्थ भरे पड़े हैं उनमें हीरे जवाहरात की खजाने भी है परंतु यह सभी पर्वतों में प्राप्त नहीं होते हैं विशेष गुण वाले वस्तुओं को विशिष्ट स्थानों में ही खोजना पड़ता है बुद्धिमान लोगों का कर्तव्य होता है कि वह अपनी संतान को अच्छे कार्य व्यापार में लगाए क्योंकि नीति का जानकार वसत व्यवहार वाले व्यक्ति भी कुल में सम्मानित होते हैं.
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चाणक्य कहते हैं कि जो माता-पिता अपने बच्चों को नहीं पढ़ाते हैं वह उनके शत्रु होते हैं ऐसे अपठित सभा के मध्य में उसी प्रकार शोभा नहीं पाते जैसे हंशु के मध्य मे बगुला शोभा नहीं पाता अत्यधिक लाड प्यार से पुत्र और शिष्य गुण हीन हो जाते हैं और ताड़ना से गुनी हो जाते हैं भाव यही है कि पुत्र और शिष्य को यदि तारना का वह रहेगा कभी भी गलत मार्ग पर नहीं जाएंगे.
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आचार्य चाणक्य कहते हैं कि एक श्लोक आधा श्लोक श्लोक का एक चरण उसका आधा अथवा एक अक्षर ही सही या आधा अक्षर प्रतिदिन जरूर पढ़ना चाहिए कहने का अर्थ है शिक्षा से ही लोक व्यवहार का रहस्य प्रकट होता है हमें हमेशा पढ़ते रहना चाहिए स्त्री का वियोग अपने लोगों से अनाचार कर्ज का बंधन दुष्ट राजा की सेवा दरिद्रता और अपने प्रतिकूल सभा यह सभी अग्नि ना होते हुए भी शरीर को जलाकर राख कर देते हैं नदी के किनारे खड़े वृक्ष पुरुषों के घर स्त्री मंत्री के बिना राजा शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं इसमें कोई भी संशय नहीं करना चाहिए.
Chanakya quotes 7
आगे चाणक्य कहते हैं कि ब्राह्मणों का बल विद्या है राजाओं का बल उनका सेना है वैश्य का बल धन है और शूद्रों का बाल छोटा बनकर रहना अर्थात सेवा कर्म करते रहना है आपको भी इन बातों का ध्यान रखना चाहिए कि वैश्या निर्धन मनुष्य को प्रजा पराजित राजा को पक्षी फल रहित वृक्ष को और अतिथि उस घर को जिन्हें वह आमंत्रित किए जाते हैं को भोजन करने के पश्चात छोड़ देते हैं ब्राह्मण दक्षिणा ग्रहण करके जजमान को शिक्षक विद्या अध्ययन करने के उपरांत अपने गुरु को और हिरन जले हुए वन को त्याग देते हैं.
Chanakya quotes 8
इस श्लोक में चाणक्य ने कहा कि किसी प्रयोजन के लिए यदि कोई व्यक्ति किसी के पास जाता है तो उसे वह कार्य खत्म होने के तुरंत बाद ही वह स्थान छोड़ देना चाहिए उद्देश्य पूर्ण होने के बाद वहां पर रुकना किसी भी रूप से उत्तम नहीं है बुरा हरचरण अर्थात बुराचार्य के साथ रहने से पा दृष्टि रखने वालों का साथ करने से अर्थात अशुद्ध स्थान पर रहने वाले से मित्रता करने वाला शीघ्र ही नष्ट हो जाता है बुरी संगत का सदैव बुरा असर पड़ता है जहां चाणक्य ने इसी और ध्यान खींचा है.
Chanakya quotes 9
चाणक्य समझाते हैं कि मित्रता बराबर वालों में ही शोभा मानी जाती है नौकरी राजा की अच्छी होती है व्यवहार में कुशल व्यापारी और घर में सुंदर स्त्री शोभा पाती है मित्रता कभी दो स्थान वालों में सफल नहीं होती है एक सा स्वभाव एक समान समाज में जीवन स्तर ठीक से कर्म दो व्यक्ति के बीच में मित्रता के आधार हो सकते हैं नौकरी हमेशा सरकारी अच्छी होती है क्योंकि इसमें स्थायित्व होता है जो व्यवहारिक चतुर और व्यापार कुशल होता है वह इस समाज में सम्मान का पात्र होता है और सुंदर स्त्री घर में ही शोभनीय होती है.
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In times of trouble leniency becomes crime.