चाणक्य नीति अध्याय 7 अनमोल वचन | Chanakya quotes in Hindi Chapter 7
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सातवां अध्याय की शुरुआत में श्री चाणक्य कहते हैं कि बुद्धिमान पुरुष भीम के नाश को मन के संत आपको ग्रहणी के दोस्तों को किसी धूर्त के द्वारा ठगे जाने को और अपमान को किसी को नहीं बताते हैं यह मनुष्य की सहनशीलता की ओर इशारा करते हुए कहां है कि बुद्धिमान व्यक्ति वही है जो अपने परिवार के नुकसानो को और दोषों को छिपाकर सहन कर लेता है क्योंकि उसका प्रदर्शन करने से केवल जगहसही होती है ऐसी बातें को किसी भी व्यक्ति के सामने उजागर नहीं करना चाहिए.
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चाणक्य का मानना है कि कई बार संकोच की प्रवृत्ति के कारण मनुष्य को हानि उठानी पड़ती है मनुष्य के लिए यह जरूरी है कि किसी भी आर्थिक व्यवहार में उसे लिखा पढ़ी कर लेनी चाहिए इसमें उसे जरा भी संकोच नहीं करना चाहिए इसके अलावा विद्यालय दिशा में भोजन देते समय कभी भी संकोच नहीं करना चाहिए आगे समझाते हैं कि संतोष से सर्वश्रेष्ठ सुख की प्राप्ति होती है याचक दीनता प्रकट करता है धनी गर्व करता है तथा और अधिक की इच्छा करता है जिसका धन नष्ट हो गया हो वह शौक करता है पर जो संतोषी है वह सुखी रहते हैं.
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आगे समझाते हैं कि अपनी स्त्री भोजन और धन इन 3 चीजों में संतोष रखना चाहिए और विद्याधन तप दान करने में कभी भी संकोच नहीं करना चाहिए जीवन में सजगता बहुत जरूरी है इसलिए चाणक्य का कहना है की दो ब्राह्मणों के बीच से गुजरने का अर्थ यही है कि आप उनके वाद-विवाद में बिगड़ी डाल रहे हैं अतः कभी उनके बीच से होकर ना निकले ब्राह्मण और अग्नि के बीच से निकलने का अर्थ यही है कि आप उनके अग्निमत में बिगड़ी डाल रहे हैं पति पत्नी तथा स्वामी और सेवक के बीच जब वार्तालाप चल रहा हो तो बीच में घुसकर आप उनके बातों में बिगड़ी डालते हैं इसी तरह बैल और हल के बीच निकलते वक्त चोट लगने का भय बना रहता है अतः हमेशा ध्यान रखना चाहिए.
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आगे समझाते हैं कि पैर से अग्नि गुरु ब्राह्मण गौ कन्या वृद्ध और बालक को कभी नहीं छूना चाहिए इन्हें पैर से स्पर्श करने पर पाप लगता है क्योंकि यह सभी आदरणीय है चाणक्य कहते हैं कि बैलगाड़ी से 5 हाथ घोड़े से 10 हाथ हाथी से हजार हाथ दूर बचकर रहना चाहिए और दुष्ट पुरुष या राजा का देश छोड़ देना चाहिए यह वह यह समझाना चाहते हैं जो जितना अधिक दुष्ट है उसे उसी अनुपात में दूरी रखते हुए जीवन यापन करना अच्छा होता है आगे समझाते हैं कि हाथी को अंकुश से घोड़े को चाबुक से सिंह वाले बैल को डंडे से और दुष्ट व्यक्ति को वश करने के लिए हाथ में तलवार लेना आवश्यक है.
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आचार्य चाणक्य के अनुसार दुष्ट व्यक्ति के आसानी से ना तो वश में किया जा सकता है और ना ही उसे सुधारा जा सकता है ऐसे व्यक्ति को ठीक करने के लिए कभी-कभी तलवार से चोट पहुंचाने पड़ती है और कभी कभी उसे खत्म भी करना पड़ता है आगे चाणक्य कहते हैं कि ब्राह्मण भोजन से संतुष्ट होते हैं मोर बादलों के गरजने से साधु लोग दूसरे की समृद्धि देखकर और दूसरे लोग दूसरे पर विपत्ति आई देखकर प्रसन्न होते हैं.
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आगे चाणक्य समझाते हैं कि अपने से शक्तिशाली शत्रु को विनय पूर्वक उसके अनुसार चलकर दुर्बल शत्रु पर अपना प्रभाव डाल कर और सामान बन वाले शत्रु को अपने शक्ति से या फिर विनम्रता से जैसा अवसर हो उसी के अनुसार व्यवहार करके अपने वश में करना चाहिए शत्रु से व्यवहार करते समय इस बात की ओर इशारा किया है कि शत्रु से व्यवहार करने से पूर्व उसकी शक्ति और सामर्थ्य का पूर्व अनुमान लगा लेना चाहिए राजा की शक्ति उसके बाहुबल में ब्राह्मण की शक्ति उसके तत्वज्ञान में और स्त्रियों की उनकी सौंदर्य तथा माधुरी में होती हैं.
संसार में अत्यंत सरल और सीधा होना भी ठीक नहीं है वन में जाकर देखो कि सीधे वृक्ष को ही पहले काटा जाता है और टेडा मेडा वृक्ष को छोड़ दिया जाता है इस बात में जीवन की सच्चाई की ओर संकेत किया है सीधापन आदमी की कमजोरी का परिचायक माना जाता है उसे हर कोई सताने सकता है परंतु टेढ़ा स्वभाव के कोई भी उलझना नहीं चाहता सभी उन से बचना चाहते हैं जिस सरोवर में जल रहता है हंस वहीं रहते हैं और सुखी सरोवर को छोड़ देते हैं मनुष्य को ऐसे हंसों के समान नहीं होना चाहिए कि बार-बार स्थान बदले.
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चाणक्य का मत है कि मनुष्य के लिए अपना स्वार्थ ही प्रमुख नहीं होना चाहिए जिस स्थान विशेष से एक बार नाता जोड़ लिया जाए तो उसे कठिनाई आने पर भी नहीं छोड़ना चाहिए कमाए गए धन का दान करते रहना ही उसकी रक्षा है जैसे तालाब के पानी का बहते रहना ही उत्तम है तालाब का पानी एक ही स्थान पर रूका रहेगा तो वह सड़ जाएगा संसार में जिसके पास धन है उसी के सब मित्र होते हैं उसी के सब बंधु बांधव होते हैं वहीं शेष पुरुषों के गिनती में गिना जाता है और वही थर्ड वार्ड से जीवन जीता है.
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चाणक्य कहते हैं कि धन के बिना कोई भी कार्य नहीं चलता है धन परमात्मा तो नहीं है लेकिन उसका छोटा भाई जरूर है जिसके पास धन है वही कुलीन है विद्वान है शास्त्रज्ञ है गुनी है वक्ता है धन कमाओ मगर इमानदारी से कमाओ अत्यंत क्रोध करना कड़वी वाणी बोलना दरिद्रता और अपने सगे संबंधियों से वैर विरोध करना नीच पुरुष का संघ करना छोटे कुल की व्यक्तियों की नौकरी अथवा सेवा करना.
यह 6 दुर्गुण ऐसे है जिन से युक्त मनुष्य को पृथ्वी लोक मैं ही नरक के दुखों का आभास होता है मनुष्य यदि सिंह के मांद के पास जाता है तो गजमोती पाता है और यदि सियार के मान के पास जाता है तो बछड़े की पूछ और गधे के चमड़े का टुकड़ा पाता है भाव यह है कि कि बड़े लोगों के पास जाने से धन-संपत्ति और ऐश्वर्या प्राप्त होते हैं और छोटे तथा नीच लोगों की संगति करने से सिवाय दुख के और कुछ भी प्राप्त नहीं होता है.
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आगे चाणक्य कहते हैं कि बोलचाल अथवा वाणी में पवित्रता मन की स्वच्छता और यहां तक कि इंद्रियों को वश में रखकर पवित्र रखने का भी कोई महत्व नहीं होगा जब तक कि मनुष्य के मन में जीवन मात्र के लिए दया की भावना उत्पन्न नहीं होती है.
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आगे चाणक्य समझाते हैं कि जिस प्रकार फूल में गंध तिलों में तिल लकड़ी में आग और दूध में घी गन्ने में मिठास आदि दिखाई ना देने पर भी विद्यमान रहते हैं उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में दिखाई ना देने वाली आत्मा निवास करती है यह रहस्य ऐसा है जिसे विवेक से ही समझा जा सकता है मनुष्य को चाहिए कि वह इस रहस्य को समझने का प्रयास करें वह शरीर ना होकर आत्मा है आत्मा रूपी तत्व इस देह में उसी प्रकार विद्यमान रहती है जिस तरह फूलों में गंध तिलों में तेल और लकड़ी में अग्नि तथा गन्ने में मिठास तथा दूध में गी विद्यमान होने पर भी वह दिखाई नहीं देते लेकिन वह उसमें है इसी प्रकार मनुष्य में भी कई सारे गुण उपस्थित है उसे पहचान कर उन्हें बाहर निकालने की कोशिश कीजिए यह था अध्याय 7.
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