आचार्य चाणक्य के जीवन के आरंभिक घटना से उनके चरित्र का बहुत सुंदर खुलासा होता है. एक बार वह अपने शिष्यों के साथ तक्षशिला से मगध की ओर आ रहे थे. मगध का राजा महानंद उससे द्वेष रखता था महानंद एक बार भरे सभा में चाणक्य का अपमान कर चुका था और तभी से उन्होंने संकल्प लिया था कि वह मगध के सम्राट महानंद को पद से गिरा कर ही अपने शिखा में गांठ बांदेंगे. इसलिए वह अपने सर्वाधिक प्रिय शिष्य चंद्रगुप्त को तैयार कर रहे थे.
मगध पहुंचने के लिए वे सीधे मार्ग से ना जाकर एक अन्य उबर खाबर मार्ग से अपना सफर तय कर रहे थे. मार्ग में कांटे बहुत थे तभी उनके पैरों में कांटा चुभ गया वह क्रोध से भर उठे वह फिलहाल उन्होंने अपने पीछे से कहा ”उखाड़ फेंको इन नागफनो को एक भी शेष नहीं रहना चाहिए” तो उन्होंने तब कांटो को ही नहीं उखाड़ा कांटो के वृक्षों के जड़ों में मही डाल दिया ताकि यह दोबारा ना हो सके.
इस तरह वह अपने शत्रु का मूल नाश करने पर ही विश्वास रखते थे और वह दूसरे के मार्ग पर चलने में विश्वास नहीं रखते थे. अपने द्वारा ही मार्ग पर चलने पर विश्वास करते थे आशा करते हैं इसे जाने के बाद आप भी अपना मार्ग खुद ही तैयार करें.
Chanakya quotes in Hindi:- अध्याय 1
quotes 1 : प्रथम अध्याय में चाणक्य श्री विष्णु भगवान को नमन करते हुए समझाते हैं कि राजनीति में कभी-कभी कुछ कर्म ऐसे दिखाई पड़ते हैं इन्हें देख कर सोचना पड़ता है यह उचित हुआ या अनुचित. परंतु जिस अनीति कार्य से भी जनकल्याण होता हो अथवा धर्म का पक्ष प्रबल होता हो तब उस अनैतिक कार्य को भी नीति संबंध माना जाएगा.
उदाहरण के रूप में महाभारत के युद्ध में युधिष्ठिर द्वारा अश्वत्थामा की मृत्यु का उद्घोष करना यद्यपि नीति विरुद्ध था पर नीति कुशल योगीराज कृष्ण ने इसे उचित मारा था क्योंकि वह गुरु द्रोणाचार्य के विकट संघार से अपनी सेना को बचाना चाहते थे.
quotes 2: आचार्य समझाते है कि मूर्ख शास्त्रों को पढ़ाने से दुष्ट स्त्री के पालन पोषण से और दुखियों के साथ संबंध रखने से बुद्धिमान व्यक्ति भी दुखी होता है इसका मतलब यह नहीं है कि मूर्ख शिष्यों को कभी उचित उद्देश नहीं देना चाहिए. समझाने का तात्पर्य यह है की पतत आश्रिन वाली स्त्री की संगति करना तथा दुखियों के साथ समागम करने से विद्वान तथा भले व्यक्ति को दुखी उठाना पड़ता है.
वास्तव में शिक्षा उस इंसान को दी जानी चाहिए जो सुपात्र हो जो व्यक्ति समझाएं गए बातों को ना समझता हूं उसे परामर्श देने से कोई लाभ नहीं है मूर्ख व्यक्ति को शिक्षा देकर अपना समय ही नष्ट किया जाता है यदि दुखी व्यक्ति के साथ संबंध रखने की है तो दुखी व्यक्ति हर पल अपना ही रोना रोता रहता है इससे विद्वान व्यक्ति की साधना और एकाग्रता भंग हो जाती है.
quotes 3: आगे चाणक्य में समझाते हैं की दुष्ट स्त्री छल करने वाला मित्र तथा तीखा जवाब देने वाला नौकर तथा जिस घर में सांप रहता है उस घर में निवास करने वाले ग्रह स्वामी की मौत में संचय ना करें वह निश्चय ही मृत्यु को प्राप्त होगा. घर में यदि दुष्ट और दुष्ट चरित वाली पत्नी हो तो उस पति का जीना और ना जीना बराबर ही है वह अपमान और लज्जा के मुंह से एक तो वैसे ही मृत्यु के समान है.
ऊपर से उसे यह भी बना रहेगा यह कहीं अपने स्वार्थ के लिए कहीं उसे विष ना दे दे. दूसरी ओर ग्रह स्वामी का दोस्त भी दगाबाज हो धोखा देने वाला हो ऐसा मित्र आस्तीन का सांप होता है वह कभी भी अपने स्वार्थ के लिए उस गृह स्वामी को ऐसी स्थिति में डाल सकता हैं जिससे उभारना उसकी सामर्थ्य से बाहर की बात होती है.
तीसरा यदि घर का नौकर बदजुबान बार-बार बातों में झगड़ा करने वाला हो पलट कर जवाब देने वाला हो तो समझ लेना चाहिए कि ऐसा नौकर निश्चित रूप से घर के भेद जानता है और जो घर का भेद जान लेता है वह उसी तरह से घर बार का विनाश कर सकता है जैसे विभीषण ने घर में भेद करके रावण का विनाश करा दिया था तभी मुहावरा भी बना घर का भेदी लंका ढाए.
quotes 4: विपत्ति में काम आने वाले धन की रक्षा करें. धन से स्त्री की रक्षा करें और अपनी रक्षा धन और स्त्री से सदा करें. अथर्व संकट के समय धन की जरूरत सभी की होती है इसलिए संकट कार्य के लिए धन बचाकर रखना उत्तम होता है. धन से अपनी पत्नी की रक्षा की जा सकती है अर्थात यदि परिवार पर कोई संकट आए तो धन का लोभ नहीं रखना चाहिए.
परंतु अपने ऊपर कोई संकट आ जाए तो उस समय उस धन और उस स्त्री दोनों का बलिदान कर देना चाहिए. आगे से चाणक्य कहते हैं की आपत्ति से बचने के लिए धन की रक्षा करें पता नहीं कब आपदा आ जाए लक्ष्मी तो चंचल है संचय किया गया धन कभी भी नष्ट हो सकता है.
quotes 5: श्री चाणक्य कहते हैं जिस देश में सम्मान नहीं जीविका के साधन नहीं परिवार नहीं अर्थात विद्या प्राप्त करने के साधन नहीं वहां हमें कभी भी नहीं रहना चाहिए. अगले श्लोक में श्री चाणक्य कहते हैं कि जहां धनी, वैदिक, ब्राह्मण, राजा, नदि और वेद यह ना हो वहां 1 दिन से ज्यादा नहीं रहना चाहिए.
अर्थात कहने का भाव यह है कि जिस जगह पर यह पांच चीजें ना हो वहां 1 दिन से ज्यादा नहीं रहना चाहिए जहां धनी व्यक्ति होंगे वहां व्यापार अच्छा होगा जहां व्यापार अच्छा होगा वहां जीविका के साधन अच्छे होंगे, जहां वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण होंगे वहां मनुष्य जीवन के धार्मिक तथा ज्ञान के क्षेत्र में भी विशेष रूप से फैले हुए होंगे. जहां स्वच्छ जल की नदियां होंगी वहां जल का अभाव नहीं रहेगा और जहां कुशल वैध होंगे वहां बीमारी पास में नहीं आ सकती.
quotes 6: आगे से चाणक्य कहते हैं कि जहां जीविका, भय, लज्जा और त्याग की भावना ना हो वहां के लोगों का साथ कभी ना करें चाणक्य कहते हैं कि जिस स्थान पर जीवन यापन करने के साधन ना हो तथा डर की स्थिति बनी रहती हो, जहां लज्जा सील व्यक्तियों की जगह बेशर्म और खुदगर्ज लोग रहते हो, जहां कला कौशल और हस्तक्षेप का सर्वदा अभाव हो और जहां के लोगों के मन में जहां भी त्याग और परोपकार की भावना ना हो वहां के लोगों के साथ ना तो रहे और ना ही उनसे कोई व्यवहार रखें.
quotes 7: चाणक्य कहते हैं कि नौकरों को बाहर भेजने पर, भाई बंधुओं को संकट के समय तथा दोस्तों को विपरीत परिस्थितियों में तथा अपने स्त्री को धन के नष्ट हो जाने पर परखना चाहिए.
अर्थात उसकी परीक्षा लेनी चाहिए चाणक्य ने समय-समय पर अपने सेवकों, भाई बंधुओं, मित्रों और अपने स्त्रियों की परीक्षा देने की बात कही है. समय आने पर यह लोग आपका किस प्रकार साथ देते हैं या देंगे इसकी जांच उनके कार्यों से ही होती है. वास्तव में मनुष्य का संपर्क अपने सेवकों, मित्रों और अपने निकट रहने वाली पत्नी से होते हैं.
यदि यह लोग छल करने लगे तो जीवन दूभर हो जाने लगता है इसलिए समय-समय पर इनकी जांच करना जरूरी है कि कहीं यह आपको धोखा तो नहीं दे रहे हैं आगे समझाते हैं कि बीमारी में विपत्ति काल में अकाल के समय दुश्मनों से दुख पाने या आक्रमण होने पर राज दरबार में और श्मशान भूमि में जो साथ रहता है वही सच्चा भाई बंधु अथवा मित्र होता है.
quotes 8: श्री चाणक्य समझाते हैं कि जो अपने निश्चित कर्मा, वस्तुओं का त्याग करके अनिश्चय की चिंता करता है. उसका अनिश्चित लक्ष्य तो नष्ट हो ही जाता है, निश्चय भी नष्ट हो जाता है. किसी ने सही कहा है ”आदि को छोड़ साड़ी को ढाए आदि मिले ना पूरी पावे’‘
जो व्यक्ति अपने निश्चित लक्ष्य से भटक जाता है उसका कोई भी लक्ष्य पूरा नहीं हो पाता है अर्थात भाव यही है कि मनुष्य को उन्हीं कार्य में हाथ डालना चाहिए. जिन्हें वह पूरे करने की शक्ति रखता हो.
quotes 9: आगे चाणक्य कहते हैं कि बुद्धिमान व्यक्ति को अच्छे कुल में जन्म लेने वाली कन्या से विवाह कर लेना चाहिए परंतु अच्छे रूप वाली नहीं. अच्छे कुल की कन्या से विवाह नहीं करना चाहिए क्योंकि विवाह संबंध सामान कुल में ही श्रेष्ठ होता है.
quotes 10: लंबे नाखून वाले हिंसक पशु, बड़े-बड़े सिंह वाले पशुओं, शस्त्र धारियों स्त्रियों और राजदरबार का कभी भी विश्वास नहीं करना चाहिए. श्री चाणक्य कहते हैं पुरुषों की तुलना में स्त्री का भोजन दुगना तथा लज्जा चौगुना सहरसा 6 गुना और काम 8 गुना अधिक होता है इन बातों का हमेशा ध्यान रखना चाहिए.
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