चाणक्य नीति अध्याय 15 अनमोल वचन | Chanakya quotes in Hindi Chapter 15
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शुरुआत में श्रीचाणक्य कहते हैं जिसका हृदय सभी प्राणियों पर दया करने हेतु द्रव्य दौड़ता है उसे ज्ञान मोक्ष जटा और भसम लगाने की क्या जरूरत है. भाव यह है कि हमें सदैव प्राणियों पर दया करना चाहिए, उनसे स्नेह करना चाहिए जो ऐसा करता है उसका स्थान परमात्मा के समकक्ष हो जाता है. जो गुरु एक ही अक्षर अपने शिष्य को पड़ा देता है उसके लिए इस पृथ्वी पर अन्य चीज ऐसी महत्वपूर्ण नहीं है जिसे वह गुरु को देखकर उसका ऋण उतार सके.
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आगे कहते हैं कि दुष्टो और कांटों से बचने के दो ही उपाय हैं जूतों से उन्हें कुचल डालना और उनसे दूर रहना भाव यह है कि दुष्ट और कांटे काफी कष्ट पहुंचाने वाले होते हैं. इन से बच कर रहना ही ठीक है यदि इनका सामना हो जाए तो इन्हें जूतों से कुचल देना चाहिए.
Chanakya quotes 3
आगे समझाते हैं कि गंदे वस्त्र डालने वाले दातों पर मेल जमाए रखने वाले अत्यधिक भोजन करने वाले कठोर वचन बोलने वाले सूर्योदय से सूर्यास्त तक सोने वाले चाहे वह साक्षात विष्णु ही क्यों ना हो, लक्ष्मी भी उन्हें त्याग देती है, ऐसे व्यक्ति जो आलसी कामचोर पेटू क्रोधी और में होते हैं ऐसे लोगों के पास धन संपत्ति कभी भी नहीं आती और आती भी है तो शीघ्र ही नष्ट हो जाती हैं, परंतु जो व्यक्ति स्वच्छ रहेगा कर्मठ रहेगा वहीं धन को जुटाने में कामयाब होगा. निर्धन होने पर मनुष्य को उसके मित्र स्त्री नौकर और हितेषी जन छोड़ कर चले जाते हैं, परंतु पुनः धन आने पर फिर से उसी का आश्रय लेते हैं. इसका भाव यह है कि आदमी के जीवन में धन का बड़ा महत्व है धन ही भाई है धन ही मित्र है और धन ही स्त्री है.
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आगे कहते हैं कि अन्याय से उत्पादित किया गया धन 10 वर्ष तक चलता है 11 वर्ष की आते ही जड़ से ही नष्ट हो जाते हैं इसलिए अन्याय पूर्वक धन कमाने के लिए व्यक्ति को कभी प्रयास नहीं करना चाहिए. समर्थ व्यक्ति द्वारा किया गया गलत कार्य भी अच्छा घर आता है और नीच द्वारा किया गया अच्छा कार्य भी गलत कहलाता है. ठीक वैसे ही जैसे अमरता प्रदान करने वाला अमृत राहु के लिए मृत्यु के कारण मिला प्राणघातक विश भी शंकर के लिए भूषण हो गया.
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आगे समझाते हैं कि भोजन वही है जो ब्राह्मण के करने के बाद बचा रहता है, भलाई वही है जो दूसरों के लिए की जाती है, बुद्धिमान वही है जो पाप नहीं करता बिना पाखंड और दिखावे के जो कार्य किया जाता है, वही धर्म है. आगे बहुत ही अच्छी बात समझाते हैं की मणि चाहे पैरों में पड़ी हो और चाहे कांच सिर पर धारण किया गया हो परंतु क्रय विक्रय करते समय अर्थात मूल भाव करते समय मणि मणि ही रहती है और कांच कांच ही रहता है. भाव यह है कि समय तथा भाग्य के कारण विद्वान व्यक्ति का भले ही सम्मान ना हो पर जब मूल्यांकन का समय आता है.
विद्वान कृद्वानता को कोई चुनौती नहीं दे सकता योग व्यक्ति की अलग ही पहचान होती है और अयोग्य व्यक्ति की जगसही होती है. शास्त्रों का कोई अंत नहीं है, विद्या बहुत हैं जीवन छोटा है विघ्न और बाधाएं अनेक है. अतः जो सार तत्व हैं उसे ही ग्रहण करना चाहिए. जैसे हंस जल के बीच से भी दूध को पी लेता है अर्थात मानव जीवन बहुत छोटा है और इस संसार में ज्ञान अपरिमित है. जीवन में सारे ज्ञान को पाया नहीं जा सकता है इसलिए ज्ञान के उस सार तत्व को ग्रहण कर लेना चाहिए जो सत्य है.
Chanakya quotes 6
आगे चाणक्य कहते हैं कि अचानक दूर से आए थके हरे पथिक से बिना पूछे ही जो व्यक्ति स्वयं भोजन कर लेता है वह चांडाल होता है.
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आगे चाणक्य कहते हैं कि यह निशा है कि बंधन बहुत सारे हैं परंतु प्रेम का बंधन निराला होता है जैसे लकड़ी को छेदने में सामर्थ भोरा कमल के पंखुड़ियों में उलझ कर प्रिया हीन हो जाता है अर्थात प्रेम रस मस्त हुआ भंवरा कमल के पंखुड़ियों को नष्ट करने में समर्थ होते हुए भी उसमें छेद नहीं कर पाता अर्थात जो प्राणी इस संसार के माया में फंस जाता है. वह भंवरे की तरह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है.
जिस प्रकार भंवरा कमल की मुंह में फंस कर उसके पंखुड़ियां में क्या धोकर अपना जीवन गवा देता है. चंदन का कटा हुआ वृक्ष भी सुगंध नहीं छोड़ता बूढ़ा होने पर भी गजराज कृड़ा नहीं छोड़ता ईख कोहलू से प्रश्न के बाद भी अपना मिठास नहीं छोड़ता और कुलीन व्यक्ति दरिद्र होने पर भी सुशील और गुणों को नहीं छोड़ता भाव यह है की जन्म से ही शाश्वत गुण मनुष्य को प्राप्त होते हैं साथ नहीं छोड़ते यहां पर समाप्ति होती है 15 अध्याय की.
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