चाणक्य नीति अध्याय 4 अनमोल वचन | Chanakya quotes in Hindi Chapter 4
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अब बढ़ते हैं चौथे अध्याय की ओर जहां चाणक्य में समझा रहे हैं कि शरीरधारी जीव के गर्व काल में ही, आयु, कर्म, धन, विद्या, मृत्यु, इन पांचों की सृष्टि साथ ही साथ हो जाती है. इस नीति के द्वारा चाणक्य के मानव जीवन की सभी बातों को पूर्व निर्धारित मानते हैं. उनका मत है कि मनुष्य काल की जीवन अवधि मृत्यु सुख दुख मान अपमान विद्या और संपत्ति का भोग सभी ईश्वर के अधीन है बिना उसके मर्जी के पत्ता तक नहीं हिलता अतः सब कुछ उस पर छोड़ कर मन दोषी को उसके कर्म पर ध्यान देना चाहिए.
Chanakya quotes 2
आगे चाणक्य समझाते हैं कि साधु महात्मा के सत्संग से पुत्र मित्र बंधु और जो अनुराग करते हैं. वह संसार के चक्र से छूट जाते हैं और उनके कुल धर्म से उनका कुल उज्जवल हो जाता है. भाव यह है कि जिस स्कूल में साधु महात्मा जैसा कोई पुत्र उत्पन्न हो जाता है उसके सत्संग से बाकी लोगों का भी सांसारिक परिष्कार हो जाता है.
Chanakya quotes 3
आगे समझाते हैं कि जिस प्रकार मछली देखरेख से कश्वी चिड़िया स्पर्श से सदैव अपने बच्चों का लालन पोषण करती है वैसे ही अच्छे लोगों के साथ से सर्व प्रकार से रक्षा होती है. यहां चाणक्य सत्संगति पर जोड़ देते हैं और कहते हैं कि अच्छे लोगों का साथ होने पर किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती है सज्जनों का साथ सदैव सुखकारी और हितकारी होता है.
Chanakya quotes 4
चाणक्य कहते हैं कि यह नर शरीर जब तक निरोग वह स्वास्थ्य या जब तक मृत्यु नहीं आती है तब तक मनुष्य को सभी पुण्य कर्म कर लेनी चाहिए क्योंकि अंत समय आने पर वह क्या कर पाएगा. समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता समय गुजरता जाता है इसलिए किसी भी कार्य को कल पर नहीं छोड़ना चाहिए और कहा भी जाता है “कल करे सो आज कर आज करे सो अब पल में प्रलय होएगी फिर करेगा कब” आते समय का कोई भरोसा नहीं है जो पुण्य कर्म करने हैं अभी कर लेना चाहिए फिर समय नहीं मिलेगा.
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आगे कहते हैं कि विद्या का अनधेनु के समान एक शक पूरी करने वाली होती है विद्या से समय पर फल प्राप्त होते हैं विदेश में विद्या माता के समान रक्षा करती है विद्वानों ने विद्या को गुप्त धन कहां है अर्थात विद्या वह धन है जो आपातकाल के समय काम आती है इसका ना तो हरण किया जा सकता है और ना ही इसे कोई चुरा सकता है विद्या सभी प्रकार से सुरक्षित और और समय पड़ने पर रक्षा करने वाली है इसे जितना दिया जाता है यह उतने ही बढ़ती जाती है.
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आगे श्री चाणक्य एक बहुत ही कटु बात कहते हैं वे कहते हैं की बहुत उम्र वाली मूर्ख पुत्र की अपेक्षा पैदा होते ही जो मर गया वह अच्छा है क्योंकि मरा हुआ पुत्र कुछ देर के लिए कष्ट देता है परंतु मूर्ख पुत्र जीवन भर जलाता है.
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आगे फिर चाणक्य कहते हैं कि उस गाय से क्या लाभ जो ना बच्चा जने नाही दूध दे ऐसे पुत्र के जन्म लेने से क्या लाभ जो ना तो विद्वान हो और ना ही किसी देवता का भक्त हो भाव यह है कि दूध देने वाली गाय के समान ही ऐसा पुत्र की कामना की गई है जो विद्यावान भी हो और ईश्वर में आस्था रखता हो और ऐसे बच्चे सदैव सुख देने वाले और मां-बाप का नाम रोशन करने वाले होते हैं.
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आगे चाणक्य समझाते है कि राजा एक ही बार बोलते हैं मतलब आज्ञा देते हैं पंडित लोग किसी कर्म के लिए एक ही बार बोलते हैं मतलब बार-बार श्लोक नहीं पड़ते हैं और कन्याए भी एक ही बार दी जाती है यह तीन एक ही साथ होने से विशेष महत्व रखती है राजा का विद्वान का और कन्या के पिता का वचन अथवा कथन अटल होता है.
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आगे समझाते हैं कि तपस्या अकेले में अध्ययन या पढ़ाई दो के साथ और गाना 3 के साथ और यात्रा चार के साथ खेती पांच के साथ और युद्ध बहुत की सहायता से होने पर ही उत्तम होते हैं फिर आगे कहते हैं कि पत्नी वही है जो पवित्र और चतुर है पतिव्रता है पत्नी वही है जिस पर पति का प्रेम है पत्नी वही है जो सदैव सत्य बोलती है.
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आगे समझाते हैं कि बार-बार अभ्यास ना करने पर विद्या विश बन जाती है बिना पचा भोजन विश बन जाता है दरिद्र के लिए सज्जनों की सभा या साथ और वृद्धों के लिए युवा स्त्री विष के समान होती है अभ्यास से शिक्षा अथवा विद्या का विकास होता है जो भोजन पचता नहीं है वह शरीर पर कुप्रभाव डालता है सज्जन अपने ही लोगों को विष के समान दिखाई पड़ता है उन्हें वह भार स्वरूप दिखाई देने लगता है यदि किसी वृद्ध को युवा स्त्री मिल जाए तो वह उसे संतुष्ट ना करने की स्थिति में जहर दिखाई देने लगती है प्रत्येक वस्तु का अपना उचित स्थान वह महत्व होता है.
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आगे कहते हैं दया ही धर्म को छोड़ दो विद्या हिनगुरु को छोड़ दो झगड़ालू और क्रोधी स्त्री को छोड़ दो और स्नेह में विलीन बंधु बांधव को छोड़ दो भाव यह है कि ऐसे धर्म को कभी नहीं अपनाना चाहिए, जिसमें प्राणी मात्र के लिए ऐसे दयावान ना हो ऐसे गुरु को नहीं अपनाना चाहिए, जिसमें विद्वता और ज्ञान ना हो ऐसी पत्नी को कभी स्वीकार नहीं करना चाहिए, जो क्रोधी स्वभाव की हो और कलह करने वाली हो साथ ही ऐसे परिजनों से संबंध नहीं रखना चाहिए.
जो सुख दुख में काम ना आए बहुत ज्यादा पैदल चलना मनुष्य को बुढापा ला देता है घोड़ों को एक ही स्थान पर बांधे रखना और स्त्रियों के साथ पुरुष का समागम ना होना और वस्तुओं को लगातार धूप में डालने से उनका बुढ़ापा आ जाता है बुद्धिमान व्यक्ति को बार-बार यह सोचना चाहिए कि हमारे मित्र कितने हैं हमारा समय कैसा है अच्छा है या फिर बुरा है यदि बुरा है तो उसे अच्छा कैसे बनाएं हमारा निवास स्थल कैसा है हमारी आय कितनी है और वयाय कितना है मैं कौन हूं आत्मा हो अथवा शरीर स्वाधीन हूं अथवा पराधीन तथा मेरी शक्ति कितनी है.
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आगे चाणक्य कहते हैं कि राज्य की पत्नी गुरु की स्त्री मित्र की पत्नी पत्नी की माता अर्थात सास और अपनी जननी यह 5 माताएं माने गई है इनके साथ हमेशा मां का व्यवहार करना चाहिए. यदि आप सब इन बातों का ध्यान रखेंगे तो अपने जीवन मैं हमेशा सफलता की राह पर चले जाएंगे.
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