होली पर निबंध || Essay On Holi In Hindi
भूमिका : होली का त्यौहार बसंत ऋतू का एक बहुत ही हर्षोल्लास वाला त्यौहार है जिसे बसंत का यौवन भी कहा जाता है। दुनिया अथार्त प्रकृति सरसों की पीली साडी पहनकर किसी का रास्ता देखती हुई प्रतीत होती हैं|
पुराने समय में होली के पर्व को आपसी प्रेम का प्रतीक माना जाता है जिसमें सभी छोटे-बड़े लोग मिलकर पुराने भेदभावों को भूल जाते हैं। जब पूरी प्रकृति रंग से सराबोर होने लगती है तो मनुष्य एक अलग तरह के आनंद में झूमने लगता है|
होली का उद्देश्य : होली के त्यौहार को होलिकोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। होलिका शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के होल्क शब्द से हुई थी जिसका अर्थ होता है भुना हुआ अन्न जिससे होलिका शब्द से होली शब्द की उत्पत्ति हो गई।
पुराने समय में जब लोग अपनी नई फसल को काटते थे तो उससे कोई भी काम करने से पहले भगवान का भोग लगाते थे इसलिए नवान्न को आग के प्रति समर्पित करके उसे भूना जाता था। अन्न के ठीक प्रकार से भुनने के बाद उसे सभी लोगों में प्रसाद के रूप में बाँट देते थे और आग से सेक लेते हुए बड़े ही स्वाद से खाते थे इसी वजह से आज भी बहुत से क्षेत्रों में होलिकोत्सव मनाया जाता है।
भक्त प्रहलाद की कहानी : पुरातन काल में एक राजा हिरण्यकश्यप था जो अपने आप को भगवान मानता था। राजा अपनी पूरी प्रजा पर कहर बरसाता था क्योंकि वह चाहता था कि सभी लोग उसे ही भगवान मानें। लेकिन राजा का बेटा प्रहलाद अपने भगवान विष्णु की भक्ति नहीं छोड़ना चाहता था। उस पर बहुत सारे अत्याचार किए गए लेकिन फिर भी वह अपने दृढ निश्चय से पीछे नहीं हटा।
अंत में राजा ने अपनी बहन होलिका को प्रहलाद को गोद लेकर चिता पर बैठने का आदेश दिया क्योंकि उसे कभी न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका प्रहलाद को लेकर चिता पर बैठ गई जिसमें प्रहलाद अपनी भक्ति में लीन हो गया और उसे कोई चोट भी नहीं आई लेकिन होलिका उसी आग में जलकर राख हो गई इसी वजह से भक्त प्रहलाद की भक्ति को याद करते हुए इस दिन को हर साल मनाया जाने लगा।
होली मनाने की विधि : होली को दो दिन का त्यौहार माना जाता है क्योंकि होली से एक दिन पहले किसी स्थान को निश्चित कर दिया जाता है। पूरा गाँव उस निश्चित जगह पर गोबर, घास, लकड़ियाँ आदि का ढेर लगा देता है। भारत के हिन्दू धर्म के अनुसार इस जगह की पूजा करने के बाद इस ढेर में आग लगा दी जाती है जिसे सभी लोग होलिका दहन कहते हैं।
इसी आग में सभी किसान अपने खेत की सबसे पहली फसल को भूनकर उसे प्रसाद के रूप में सभी को बांटते हैं। इसी की वजह से सभी में मिलन और भाईचारे की भावना पैदा होती है। अगले दिन सभी लोग एक-दूसरे को रंग लगाते हैं जिसकी वजह से अगले दिन को धुलेंडी कहते हैं।
होली के आधुनिक दोष : त्यौहार का महत्व चाहे कितना भी हो लेकिन कालातंर में उसमें दोष उत्पन्न हो ही जाते हैं। होली जैसे खुशियों के दिन भी बहुत से लोग शराब पीते हैं, जूआ खेलते हैं और घरों में लड़ाई-झगड़ा करते हैं। कई बार तो लोग अपनी दुश्मनी का बदला लेने के लिए इस होली जैस पवित्र दिन को भी छोड़ते हैं।
आज के दिन लोग सूखे और हल्के रंगों का प्रयोग करने की जगह पर काली स्याही और तवे की कालिख का प्रयोग करते हैं जिसकी वजह से उसे निकालने में त्वचा भी छिल जाती है। बहुत से लोग तो आज के दिन इधर-उधर गंदगी फैला देते हैं जिसकी वजह से आज के दिन में अस्वच्छता फैलती है।
प्रेम और एकता का प्रतीक : होली एक ऐसा पर्व है जिस दिन सभी लोग अपने शिष्टाचार के बंधनों को तोड़कर बच्चों, बूढों, राजा या रंक आदि सभी का खुलकर मजाक उड़ा सकते हैं क्योंकि आज के दिन कोई बुरा नहीं मानता है। आज के दिन सभी लोग मिलजुलकर गीत गाते हैं, नाचते हैं और भोजन भी करते हैं।
होली के पर्व के दिन सभी लोग एक-दूसरे के साथ एकता के बंधन में बंध जाते हैं। होली के दिन किसी भी बात का बुरा मानना गलत समझा जाता है। होली के दिन सभी लोग एक-दूसरे के गले मिलते हैं और अपने दिल की बातें लोगों से करते हैं। आज के दिन को मेल और प्रेम की एकता का प्रतीक माना जाता है।
उपसंहार : दीपावली की तरह होली भी भारत के प्रमुख त्यौहारों में से एक होता है। होली को मेल, एकता, प्रेम, खुशी, उत्साह और आनंद का पर्व माना जाता है। होली के दिन की खुशी की वजह से सभी में एक नए जीवन को जीने की प्रेरणा आ जाती है।
आज के दिन सभी लोगों में एक नई उमंग आ जाती है। आजकल लोग होली खेलने के लिए रंगों का प्रयोग करते हैं जो त्वचा को बुरी तरह से हानि पहुंचाते हैं। हमें होली खेलने के लिए रंगों की जगह पर गुलाल का प्रयोग करना चाहिए जिससे त्वचा को कोई हानि न हो।