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भारत की आजादी के 10 महान स्वतंत्रता सेनानी | About 10 Indian Freedom Fighters in Hindi

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Contents

  • 1 भारत की आजादी के 10 महान स्वतंत्रता सेनानी | About 10 Freedom Fighters of India in Hindi
    • 1.1 1.Freedom Fighters of India Sardar Vallabhbhai Patel
    • 1.2 2.Freedom Fighters of India Jawaharlal Nehru
    • 1.3 3.Freedom Fighters of India in Hindi Mahatma Gandhi
    • 1.4 4.Freedom Fighters of India Lal Bahadur Shastri
    • 1.5 5.Freedom Fighters of India Subhash Chandra Bose
    • 1.6 Chandra Shekhar Azad
    • 1.7 लाला लाजपत राय
    • 1.8 भगत सिंह
    • 1.9 नाना साहेब
    • 1.10 मंगल पांडे

भारत की आजादी के 10 महान स्वतंत्रता सेनानी | About 10 Freedom Fighters of India in Hindi

1.Freedom Fighters of India Sardar Vallabhbhai Patel

भारत को एक सूत्र में बांधने का काम किसी ने किया है तो वह है सरदार वल्लभभाई पटेल. जिन्होंने अपनी सूझबूझ के दम पर हमें आज का भारत दिया है. सरदार पटेल ही वह व्यक्ति हैं जिन्होंने भारत में अलग-अलग बटी 565 रियासतों को एक करा और आज के भारत के निर्माण में अहम भूमिका निभाई. हाल ही में बनाए गए स्टैचू ऑफ यूनिटी की वजह से सरदार बल्लभ भाई पटेल चर्चा का विषय बने.

बल्लभ भाई जावेर भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को ब्रिटिश इंडिया के नडियाद नामक जगह पर हुआ था. उनके पिता का नाम जावेर भाई पटेल और मां का नाम लाडवा था. वह कुल 6 भाई बहन थे जिनमें वे अपने माता-पिता के चौथी संतान थे. बचपन से ही पटेल एक मजबूत सोच के व्यक्ति थे.

पटेल ने अपने शुरुआती पढ़ाई नडियाद मैं ही हुई थी. आपको जानकर शायद हैरानी होगी पर जब सरदार वल्लभभाई पटेल 22 साल के थे तब जाकर उन्होंने अपने हाईस्कूल की शिक्षा प्राप्त की थी. परिवार वालों को लगता था कि वह अपने लक्ष्य के प्रति स्थित है. यहां तक कि उनके जीवन का कोई लक्ष्य ही नहीं है. पर इन वादों के विपरीत वल्लभभाई पटेल के कई सपने थे जिन्हें वह पूरा करना चाहते थे.

जिनमें से एक था बैरिस्टर बनना जिसके लिए उन्हें लंदन जाकर पढ़ाई करनी थी अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने कई साल अपने परिवार से दूर बिताए उन्होंने लॉयर से किताबें उधार ले लेकर पढ़ाई करी, इसके अलावा उन्होंने खुद परिश्रम किया और पैसे बचाते रहे और कहां जाता है कि उन्होंने सिर्फ 2 साल एग्जाम के लिए लिया था.

जिसके बाद वह लंदन गए और वहां बैरिस्टर की पढ़ाई की और बहुत ही अच्छे नंबर के साथ पास भी हुए. जिसकी वजह से वहां की सरकार की तरफ से भी उन्हें नौकरी की ऑफर आए. लेकिन उन्होंने सब कुछ ठुकरा कर भारत आना ज्यादा बेहतर समझा. पढ़ाई पूरी करने के बाद बल्लभ भाई पटेल वापस भारत आ गए और अपना काम शुरू कर दिया. वह बहुत ही कुशल वकील थे अपनी वकालत के शुरुआती समय में ही उन्होंने अपना एक अलग ही नाम बना लिया था.

उन्होंने शुरुआती समय में अहमदाबाद मैं ही अपनी प्रैक्टिस की.1917 वह वक्त था जब वल्लभभाई पटेल का ध्यान राजनीति की और पहली बार आया और इसी के चलते उन्होंने अहमदाबाद के कमिश्नर का चुनाव जो की वह बड़े आसानी तरीके से जीत गए. इसके साथ ही उन्हें गांधी के साथ नजदीकियों से उनका राजनीति में पहले से भी ज्यादा बनने लग गया.

साल बीत गए और वह अपना काम लगन से करते रहे 1928 आते-आते वह राजनीति में भी एक जाना माना नाम बन चुके थे. इसी साल वर्दोली नामक जिले किसानों के ऊपर सरकार टैक्स के नाम पर मनमाना पैसा वसूल कर रही थी. तब इसके उपाय के लिए बल्लभ भाई पटेल ने 1 सत्याग्रह अभियान की एक रूपरेखा तैयार की और इस सत्याग्रह में उन्होंने किसानों का सफल नेतृत्व किया. जहां से किसानों द्वारा उन को सरदार की उपाधि दी गई और इसी के बाद से उनके नाम में सरदार नाम जोड़ा जाने लगा.

सरदार पटेल अपने राजनीति गलियारों में बहुत ही बड़ा चेहरा बनने लगे थे 18 देशों ने एक कुशल नेता के रूप में देखने लगा था. इसके बाद उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई उनकी वैराग छवि और लोगों को अपनी काबिलियत से मिलाने से घबराकर अंग्रेजी हुकूमत ने 9 अगस्त 1942 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया. जिसके बाद उन्हें 3 साल सिर्फ जेल में रखा गया, 3 साल सजा काटने के बाद रिया हुए तब देश आजाद होने की कगार पर था.

ऐसा कहा जाता है कि सरदार पटेल ही वह व्यक्ति हैं जिन्होंने पाकिस्तान देश बनने का समर्थन दिया जिससे उनके मुताबिक दोनों समुदाय के बीच दंगे कम हो जाएंगे. 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ और जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बनाए गए. वही सरदार वल्लभभाई पटेल को पहला डेप्युटी पीएम बनाया गया.

भारत भले ही आजाद हो गया था पर अभी भी भारत एक सूत्र में नहीं बना हुआ था क्योंकि भारत में सैकड़ों की कागार में अलग-अलग रियासतें थी जिनके अपने कानून, नियम, पुलिस हुआ करते थे. ऐसे में एक भारत का सपना अधूरा था अब इन रियासतों को भारत में जोड़ने का काम सरदार पटेल को दिया गया. जिन्होंने भारत की 565 अलग-अलग रियासतें को भारत में बड़ी आसानी से जोड़ दिया.

सिर्फ जूनागढ़ कश्मीर और हैदराबाद ही वह रियासतें थी जिन्होंने भारत मैं जुड़ने से मना किया पर पटेल ने अपनी समाज और सूझबूझ और कुशल नेतृत्व की क्षमता से किसी तरह इनको भी भारत में जोड़ लिया और हमको आज का भारत एक संपूर्ण भारत दिया. भारत के यह लोह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल जी की मृत्यु 15 दिसंबर 1950 को भारत के मुंबई स्टेट में हार्ट अटैक के कारण हुई.

यह वह वक्त था जब भारत ने एक ऐसे व्यक्ति को खोया जिसने देश और इसके अखंडता के लिए पूरा जीवन निछावर कर दिया था. 1991 में भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न दिया गया था. सरदार पटेल को सम्मान देने के लिए भारतीय सरकार में 31 अक्टूबर 2018 को सरदार पटेल जी की 183 मीटर की प्रतिमा का शुभारंभ किया. यह दुनिया की अब तक की सबसे ऊंची प्रतिमा है इसकी ऊंचाई स्टैचू ऑफ लिबर्टी से भी कहीं ज्यादा है गुजरात के वडोदरा में बनाया गया है और इसे स्टैचू ऑफ यूनिटी नाम दिया गया है.

2.Freedom Fighters of India Jawaharlal Nehru

आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे. जो समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष थे और उन्हें लोकतंत्र का वास्तुकार भी माना गया है. उन्हें बच्चों से विशेष लगाव था इसलिए उनके जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है.

जवाहरलाल नेहरु जी का जन्म 1889 को इलाहाबाद उत्तर प्रदेश में हुआ था. उनके पिता का नाम पंडित मोतीलाल नेहरु था और उनकी माता श्रीमती स्वरूप रानी. उनकी आरंभिक शिक्षा उनके घर पर ही हुई और 15 वर्ष की उम्र में उन्हें इंग्लैंड हैरो स्कूल भेजा गया. जहां 2 साल तक पढ़ने के बाद नेहरू कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज से विज्ञान में स्नातक होकर निकले.

जिसके बाद उन्होंने लंदन के इनर टेंपल में रहते हुए वकालत की पढ़ाई भी की 1912 में भारत लौटने के बाद जवाहरलाल नेहरू इलाहाबाद हाई कोर्ट में बैरिस्टर बन गए. वर्ष 1916 में उनका विवाह कमला नेहरू से हुआ और 1917 में उनके घर भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी का जन्म हुआ.

1917 में जवाहरलाल नेहरू होम रूल लीग से जुड़ गए और 1919 में जो नेहरू जब महात्मा गांधी के संपर्क में आए तो उनके जीवन में गांधीजी का व्यक्तित्व का बहुत प्रभाव पड़ा और तब से नेहरू जी सक्रिय रूप से आंदोलनों का हिस्सा बनने लगे.

वह 1920 से 1922 के असहयोग आंदोलन में गिरफ्तार भी हुए. 1926 से 1928 तक जवाहरलाल नेहरू ने अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव का पद संभाला और 1936 में लाहौर में हुए कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष भी बनाए गए और उनके अध्यक्षता वाले इस अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पारित हुआ.

26 जनवरी 1930 को लाहौर में भारत का झंडा भी जवाहरलाल नेहरु जी ने फैलाया था. 1936 और 1937 में उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुना गया. उन्हें 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गिरफ्तार भी किया गया. एक महान राजनीतिक और वक्ता होने के साथ-साथ जवाहरलाल नेहरु जी एक महान लेखक भी थे. उन्होंने डिस्कवरी ऑफ इंडिया किताब लिखी.

इस किताब को नेहरू जी ने अहमदनगर के जेल में रहते हुए लिखा था अपने देश से जुड़े राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मसले को सफलतापूर्वक अंजाम देने वाले जवाहरलाल नेहरु जी ने अपने पड़ोसी देशों से संबंध बनाने के कई प्रयास किए लेकिन 1962 में चीन द्वारा किए गए अकर्मक हमला देखकर नेहरू जी को बहुत ठेस पहुंचा.

27 मई 1964 का दिल का दौरा पड़ने से जवाहरलाल नेहरू का देहांत हो गया और ऐसे महान शख्सियत भारत को अलविदा कह गई. उनके महान प्रयासों के लिए उन्हें 1955 में उन्हें भारत रत्न से नवाजा गया और उनकी स्मृति हर भारत के मन में आज भी जीवंत है और हमेशा जीवंत ही रहेगी.

3.Freedom Fighters of India in Hindi Mahatma Gandhi

दोस्तों आज से 70 साल पहले भारत वासियों को जीने का हकदार नहीं था क्योंकि उन्हें खूब तड़पाया जाता था. उनसे कूट कूट कर काम भी करवाया जाता था और यहां तक कि जानवरों की तरह उन्हें मारा भी जाता था. भारतवासियों की सिर्फ एक तमन्ना थी की कैसे ना कैसे करके भारत अंग्रेजों से आजाद हो जाए ताकि हम अपनी मेहनत की रोटी को खा सके.

इन्हीं लाखों भारतवर्ष की दुआ से ही भारत में ऐसे इंसान का जन्म हुआ जो कि बिल्कुल सीधा-साधा भोला इंसान था. उसी ने अपनी सच्चाई के रास्ते को पकड़ते हुए 15 अगस्त 1947 को भारत को अंग्रेजों से आजाद करा दिया था. जिसकी हम बात कर रहे हैं फादर ऑफ नेशन महात्मा गांधी जी के बारे में.

गुजरात के पोरबंदर नाम के शहर में 2 अक्टूबर 1869 को मोहनदास करमचंद गांधी जी का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था जो कि उनके पिता का नाम करमचंद गांधी और मां का नाम पुतलीबाई था. चुकी गांधी जी के पिता के चार वाइफ थे जिसमें से दो वाइफ की मौत बहुत जल्दी हो गई थी इसलिए उन्होंने दो और शादी कर लिया था और गांधी जी अपने पिता के चौथे पत्नी के बच्चे थे. जिनका नाम पुतलीबाई था गांधी जी का बचपना कुछ इस तरीके की थी कि वह काफी शर्मीले टाइप के इंसान थे.

वह ज्यादा बोला नहीं करते थे और उन्हें नए लोगों से बातचीत करने में या फिर ढेर सारे लोगों के सामने अपनी बात रखने में उनकी हालत बहुत ज्यादा खराब हो जाती थी. 1874 में गांधी जी के पिता जहां रहा करते थे यानी कि पोरबंदर को छोड़कर राजकोट में शिफ्ट हो गए थे और 1876 में वह राजकोट के दीवान भी बन गए थे और जब गांधी जी 9 साल के थे. वह राजकोट के लोकल स्कूल में पढ़ने जाया करते थे और सिर्फ 11 साल की उम्र में अपने हाईस्कूल के स्टडी को कंप्लीट कर लिए थे.

जिसमें वह अर्थमैटिक हिस्ट्री और गुजराती लैंग्वेज सिखा करते थे और इन्हीं दौरान गांधीजी के अंदर यह देखने को मिला कि गांधीजी पढ़ने में तो अच्छे थे पर उनका इंटरेस्ट गेम जैसे चीजें में नहीं था. वह बहुत ज्यादा शर्माते थे और जब 1883 में सिर्फ 13 साल के थे तभी उनके मां-बाप ने उनकी शादी उन से 1 साल बड़ी लड़की कस्तूरबा नाम की लड़की से करवा दी थी.

शादी तो हो गई थी लेकिन वह लोग एक साथ नहीं रहा करते थे क्योंकि गांधी जी का यह कहना था कि 13 साल की उम्र में शादी करने का मतलब हमारे लिए सिर्फ नए कपड़े पहनना, मिठाई खाना और पार्टी के मजे लेना था. लेकिन गांधीजी जैसे ऐसे बड़े होते गए उन्हें उनके वाइफ के प्रति प्रेम बढ़ती गई और जब वह 18 साल के थे तभी उनके वाइफ ने उनके पहले बच्चे को जन्म दिया था.

लेकिन कुछ दिनों बाद ही उसकी मौत हो गई थी और उसी समय 18 साल की उम्र में गांधी जी अपने ग्रेजुएशन को अहमदाबाद से कंप्लीट किए थे. और उन्हें किसी ने यह कहा की उन्हें अपने ग्रेजुएशन के बाद इंडिया के बाहर जाकर लॉ की स्टडी करना चाहिए. लेकिन उसी वर्ष गांधीजी का दूसरे बच्चे का जन्म हुआ था जिसका नाम हीरालाल था और गांधी जी की मां चाहती थी कि गांधीजी इतनी कम उम्र में अपनी मां को और अपने परिवार को छोड़कर इंडिया के बाहर ना जाए.

लेकिन गांधीजी पूरा मन बना लिए थे कि उन्हें इंग्लैंड जाकर ही लॉ की स्टडी को कंप्लीट करना है और उन्होंने जाते टाइम अपनी मां से यह वादा किया कि वह इंग्लैंड जाकर अल्कोहल नहीं पिएंगे मीट नहीं खाएंगे और कोई भी धूम्रपान जैसी चीजों को हाथ भी नहीं लगाएंगे और इसी के साथ गांधी जी ने 1888 में अपने लॉ की स्टडी के लिए अपने घर परिवार को छोड़कर इंग्लैंड के लिए निकल गए थे.

इंग्लैंड में जाकर अपने लॉ के स्टडी को किया और साथ ही साथ गांधीजी अपने कमजोरी पर काम करते थे यानी कि जो उन्हें लोगों के सामने बोलने में डर लगता था उसको दूर करने के लिए इंग्लैंड में पब्लिक स्पीकिंग को ज्वाइन करके प्रैक्टिस किया करते थे और गांधी जी जब इंग्लैंड में थे तभी उनके मां की मौत हो गई थी और उन्हें यह बात किसी ने नहीं बताया की उनकी मां की मौत हो गई है.

जब उन्होंने 1891 मैं अपने स्टडी को कंप्लीट करके इंडिया आए तब उन्हें यह बात पता चली कि उनकी मां की मौत हो गई है और गांधी जी को यह बात सुन के काफी बुरा लगा था. उन्होंने अपने लो के स्टडी को कंप्लीट कर लिया था इसलिए वह कोर्ट में as a लॉयर प्रैक्टिस पर जाते थे.

एक बार की बात है 1893 मैं साउथ अफ्रीका से आर्डर आया कि वह साउथ अफ्रीका में क्या as a लॉयर काम करेंगे और गांधी जी ने उस प्रपोजल को एक्सेप्ट करके उसी साल साउथ अफ्रीका के लिए निकल गए थे और जब साउथ अफ्रीका पहुंचे थे. तब एक बार की बात है जब गांधी जी को जानता कोर्ट के लिए ट्रेन की फर्स्ट क्लास टिकट लेकर फर्स्ट क्लास में ट्रेवल कर रहे थे.

जब अंग्रेजों ने गांधीजी को हाई रॉयल सोसाइटी के साथ ट्रैवल करते देखा उन्होंने बोला आपको थर्ड क्लास जनरल में जाकर सफर करना होगा लेकिन गांधीजी ने मना कर दिया था क्योंकि उनके पास फर्स्ट क्लास की टिकट थी लेकिन अंग्रेजों ने गांधीजी की एक भी नहीं सुनी और गांधी जी का हाथ मोड़ कर उन्हें बहुत मारा और वही स्टेशन में फेंक दिया जो की यही सबसे बड़ी मोमेंट थी गांधी जी की जीवन की और यहीं से आंदोलन शुरू होती है क्योंकि इसी के चलते उन्होंने बहुत संघर्ष करके भारत को 15 अगस्त 1947 में अंग्रेजों से आजाद करवा दिया था.

4.Freedom Fighters of India Lal Bahadur Shastri

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के बनारस के मुगलसराय में हुआ था. उनके पिता शारदा प्रसाद एक सरकारी स्कूल में अध्यापक थे पर वह जब 2 साल के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई इसके बाद उनकी मां वहां पर उन्हें नाना के यहां लेते गई.

मिर्जापुर से शुरुआती शिक्षा पूरी करने के बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए बनारस चले गए वह जातिवाद के बिल्कुल खिलाफ थे इसीलिए उन्होंने जाती कभी भी अपने नाम में नहीं लिखी. बनारस के काशी विद्यापीठ से ग्रेजुएशन करने के बाद उन्हें शास्त्री की उपाधि दी गई उन्होंने 1928 में ललिता देवी जी से शादी कि और दहेज लेने से भी साफ मना कर दिया क्योंकि वह दहेज के बिलकुल खिलाफ थे.

शास्त्री जी का आजादी के आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं था मगर उनके एक टीचर थे निश कामेश्वर प्रसाद मिश्रा जो बड़े देश भक्त थे उन्होंने आर्थिक रूप से शास्त्री जी की बहुत मदद भी की थी. शास्त्री जीवन के देशभक्ति से बहुत प्रभावित भी हुए और फिर 1915 में महात्मा गांधी द्वारा दिए गए भाषण ने उनकी जिंदगी ही बदल दी.

1921 में अपने हाई स्कूल एग्जाम के कुछ महीने पहले नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट यानी असहयोग आंदोलन के समय गांधी जी के बातों से प्रभावित होकर उन्होंने भी हजारों बच्चे की तरह अपने स्कूल छोड़ दिया और आंदोलन में हिस्सा लेने लगे इसके कारण उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया. मगर नाबालिक होने के कारण उन्हें छोड़ दिया गया.

1930 में शास्त्री जी कांग्रेस के एक इकाई के सेक्रेटरी बनाए गए बाद में अलाहाबाद कांग्रेस कमेटी के प्रेसिडेंट बने उन्होंने गांधीजी के नमक सत्याग्रह आंदोलन में अहम भूमिका निभाई. वह घर घर जाते थे और उन्हें लगान और टैक्स ना देने को कहते थे. 1942 में क्विट इंडिया मूवमेंट यानी भारत छोड़ो आंदोलन के समय उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था.

इस दौरान वह कहीं समाज सुधारक हो पश्चिम फिलॉस्फर के बारे में पढ़ें आजादी के बाद उन्हें उत्तर प्रदेश का पुलिस मंत्रालय सौंपा गया उन्होंने बहुत अच्छा काम किया जिसे प्रभावित होकर नेहरु जी ने उन्हें भारत सरकार का रेल मंत्री बना दिया. मगर 1956 में तमिलनाडु में एक रेल एक्सीडेंट हुआ जिसमें लगभग डेढ़ सौ लोग मारे गए इस हादसे का उन पर इतना बुरा असर पड़ा कि उन्हें लगा की है उन्हीं की गलती है और वह इस पद को संभालने के लायक नहीं है. इसलिए उन्होंने रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया.

1957 में वापस से वह यातायात और संचार मंत्री बनाए गए और फिर उन्हें कॉमर्स एंड इंडस्ट्री मिनिस्टर यानि व्यापार और उद्योग मंत्री बना दिया गया, उन्हें गृह मंत्री बनाया गया. नेहरू जी की मृत्यु के बाद 9 जून 1964 को शास्त्री जी को नया प्रधानमंत्री चुना गया. हालांकि उस समय और भी बड़े कांग्रेसी नेता थे.

प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वह बहुत साधारण स्वभाव के व्यक्ति थे उन्होंने कभी भी अपने पद का इस्तेमाल अपने निजी जरूरतों के लिए नहीं किया. अपने परिवार के बहुत दबाव देने पर उन्होंने एक कार खरीदी थी. 12000 के कार्य के लिए पैसे पूरे नहीं पढ़ रहे थे उन्होंने ₹7000 जमा किए और बाकी पैसों के लिए बैंक से लोन लिया.

शास्त्री जी ने खाने की कमी बेरोजगारी और गरीबी को दूर करने के लिए कई कदम उठाए भारत में भोजन की कमी दूर करने के लिए ग्रीन रिवॉल्यूशन यानी हरित क्रांति और दूध से बनने वाले सामान की पूर्ति करने के लिए व्हाइट रिवॉल्यूशन यानी श्वेत क्रांति शास्त्री जी की समय में ही आई थी.

1965 में जब पाकिस्तान ने युद्ध छेड़ दिया तब उन्होंने सेना को जवाब देने के लिए आजाद कर दिया था और यह साफ-साफ कह दिया ताकत का जवाब ताकत से ही दिया जाएगा. इस समय उन्होंने किसानों और जवानों का हौसला बढ़ाने के लिए जय जवान जय किसान का नारा दिया था.

युद्ध के समय की ही बात है कि अमेरिका ने भारत के ऊपर दबाव बनाना शुरू कर दिया भारत युद्ध बंद कर दे वरना PL 480 समझौते के तहत भारत से मिलने वाला गेहूं अमेरिका बंद कर देगा. उस दिन शाम को शास्त्री घर में शाम का खाना बनाने से मना कर दिया कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि मैं देखना चाहता हूं कि मेरा परिवार बिना भोजन किए रह सकता है कि नहीं.

यदि रह सकता है तो मैं कल ही अपने देशवासियों से 1 दिन का खाना ना खाने का आग्रह करूंगा हम भूखे रह लेंगे लेकिन अमेरिका के धमकी के आगे नहीं झुकेंगे. शास्त्री जी को दिल की बीमारी थी और उन्हें पहले भी दो बार दिल का दौरा पड़ चुका था तीसरी बार में कार्डियक अरेस्ट के कारण फर्स्ट जनवरी 1966 को उनकी मृत्यु हो गई.

हालांकि उनकी मृत्यु पर आज भी कई तरह के प्रश्न चिन्ह लगते हैं ऐसा माना जाता है कि शायद उनकी मृत्यु किसी बीमारी के वजह से नहीं बल्कि एक सोची समझी चाल से हुई थी. मगर इसके खुला रूप हमारे सामने अभी भी नहीं है. अपनी मृत्यु के बाद भारत रत्न से नवाजे जाने वाले शास्त्री जी पहले भारतीय हैं.

यह शास्त्री जैसे महान देशभक्तों काबिल और ईमानदार नेताओं की ही देन है कि ना सिर्फ हमें आजादी मिली बल्कि आजादी के कुछ दशक के बाद ही हमारा देश अब दुनिया के सामने पहचान बना रहा है. मगर गुजरते समय के साथ ऐसे महान लोगों के याद में ऐसी धूल पड़ती जा रही है. हमें चाहिए कि हमें इनका हमेशा सदा सम्मान करना चाहिए और इन के सपनों का भारत बनाने के लिए अपनी तरफ से प्रयास करें.

5.Freedom Fighters of India Subhash Chandra Bose

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के एक कटक बंगाली परिवार में हुआ था. सुभाष चंद्र बोस के पिता का नाम जानकीनाथ बोस और मां का नाम प्रभावती था. जानकीनाथ बोस कटक शहर के एक मशहूर वकील थे. प्रभावती और जानकीनाथ के कुल मिलाकर 14 संताने थी जिसमें से 6 बेटियां और 8 बेटे थे.

सुभाष चंद्र बोस उनकी नौवीं संतान और पांचवे बेटे थे. अपने सभी भाइयों में से सुभाष चंद्र बोस को सबसे अधिक लगाव शरद चंद्र से था. नेता जी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कटक के रेवन शन यूनिवर्सिटी में करी थी. तत्पश्चात उनकी शिक्षा कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई थी और बाद में भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी के लिए उनके माता-पिता ने बॉस को इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया.

अंग्रेजी शासन काल में भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में जाना बहुत कठिन काम था किंतु उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया. 1921 में भारत में बढ़ती राजनीतिक गतिविधियों का समाचार पाकर बॉस ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली और शीघ्र ही वापस भारत लौट आए. सिविल सर्विस छोड़ने के बाद वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए.

सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी के अहिंसा के विचारों से सहमत नहीं थे वही सुभाष चंद्र बोस जोशी क्रांतिकारी दल के प्रिय थे. महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के विचार भिन्न-भिन्न थे लेकिन वह यह बात अच्छी तरह जानते थे कि महात्मा गांधी और उनका मकसद एक ही है यानी देश की आजादी. सबसे पहले गांधी जी को राष्ट्रपिता कह कर नेता जी ने भी संबोधित किया था.

1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया. यह नीति गांधीवादी आर्थिक विचारों के अनुकूल नहीं थी. 1939 में बॉस पुनः एक गांधीवादी प्रतिद्वंदी को हराकर विजय हुए. महात्मा गांधी जी ने इसे अपने हार के रूप में लिया उनके अध्यक्ष चुने जाने पर गांधीजी ने कहा कि बॉस की जीत मेरी हार है और ऐसे लगने लगा कि वह कांग्रेस वर्किंग कमिटी से त्यागपत्र दे देंगे.

गांधीजी के विरोध के चलते ही इसी विद्रोही अध्यक्ष ने त्यागपत्र देने की आवश्यकता महसूस की गांधी जी के लगातार विरोध को देखते हुए सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस को छोड़ दिया इस बीच दूसरा विश्व युद्ध छोड़ गया बॉस का मानना था कि अंग्रेजों के दुश्मनों से मिलकर आजादी हासिल की जा सकती है उनके विचारों को देखते हुए उन्हें ब्रिटिश सरकार ने कोलकाता में नजरबंद कर दिया लेकिन वह अपने भतीजे शिशिर कुमार बोस की सहायता से वहां से भाग निकले वह अफगानिस्तान सोवियत संघ होते हुए जर्मनी जहां पहुंचे सक्रिय राजनीति में आने से पहले नेताजी ने पूरी दुनिया का भ्रमण किया वह 1933 से 1936 तक यूरोप में रहे थे यूरोप में यह दौर हिटलर के नाजीवाद का था नाजीवाद और फासीवाद का निशाना इंग्लैंड था जिसने पहले विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी पर एकतरफा समझौते सोपे थे उसका बदला इंग्लैंड से लेना चाहते थे भारत पर भी अंग्रेजों का कब्जा था और इंग्लैंड के खिलाफ मैं नेताजी को हिटलर और मौसेलीनो में विषय का मित्र दिखाई पड़ रहा था दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है उनका मानना था कि स्वतंत्रता हासिल करने के लिए राजनीतिक गतिविधियों के साथ-साथ कूटनीति और सहयोग की भी जरूरत पड़ती है सुभाष चंद्र बोस ने 1937 में अपनी सेक्रेटरी और ऑस्ट्रेलियन एमिली शेंकल से शादी कर ली और उन दोनों की एक अनीता नाम की बेटी भी हुई जो वर्तमान में जर्मनी में सपरिवार रहती है नेताजी हिटलर से मिले हैं उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत और देश की आजादी के लिए कई काम किए उन्होंने 1943 में जर्मनी छोड़ दिया वहां से वह जापान पहुंचे और जापान से वह सिंगापुर पहुंचे जहां उन्होंने कैप्टन मोहन सिंह द्वारा स्थापित आजाद हिंद फौज की कमान अपने हाथों में ले ली उस वक्त राज बिहारी बॉस आजाद हिंद फौज के नेता थे उन्होंने आजाद हिंद फौज का पूर्ण गठन किया महिलाओं के लिए रानी झांसी रेजिमेंट का भी गठन किया जिसकी लक्ष्मी सहदल कप्तान बनी नेताजी के नाम से प्रसिद्ध सुभाष चंद्र बोस ने सशक्त क्रांति द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने का वजह से से 21 अक्टूबर 1943 को आजाद हिंद सरकार की स्थापना की तथा आजाद हिंद फौज का गठन किया इस संगठन के प्रतीक चिन्ह पर एक झंडे पर दहाड़ता हुए बाघ का चित्र बना हुआ था नेताजी अपने आजाद हिंद फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा पहुंचे यहीं पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा दिया तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा 18 अगस्त 1945 को टोक्यो जाते समय ताइवान में एक हवाई दुर्घटना में नेताजी का निधन हुआ ऐसा बताया जाता है लेकिन उनका शव नहीं मिल पाया और इतने सालों बाद भी नेता जी के मौत के कारणों पर आज भी विवाद बना हुआ है

Chandra Shekhar Azad

23 जुलाई यानी आज स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पूरे भारतवर्ष के आत्मगौरव चंद्रशेखर आजाद की जयंती है. चद्रशेखर आजाद, यह नाम सुनते ही इंसानों के मन में दो छवि सामने आती है. पहली- मूछों पर भारतीयों के आत्मसम्मान का ताव. दूसरी भारत माता के प्रति आत्मसमर्पण ऐसा कि आखिरी गोली से खुद की जान ले ली, क्योंकि आजाद हमेशा आजाद रहता है. लेकिन ऐसी कई किस्से कहानियां है जो चंद्रशेखर आजाद स्वाधीनता संग्राम में एक अलग स्थान दिलाता है. यह वही आजाद हैं, जिनसे जेल में जब अंग्रेज पूछताछ कर रहे थे तो इन्होंने अपने पिता का नाम स्वतंत्रता और पता जेल बताया था. यह वही आजाद हैं, जिन्होंने मात्र 17 साल की उम्र में आजाद हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़े थे चंद्रशेखर आजाद ने एक बार स्वतंत्रता सेनानियों की बैठक में कहा था कि अंग्रेज कभी मुझे जिंदा नहीं पकड़ सकते हैं. इसके बाद जब अल्फ्रेड पार्क में उन्हें अंग्रेजों ने 27 फरवरी 1931 को घेरा तो आजाद ने पहले जमकर मुकाबला किया. लेकिन जब आजाद के पास आखिरी गोली बची, तो आजाद ने खुद की कनपटी पर पिस्तौल रख खुद की जान ले ली और वीरगति को प्राप्त हुए. यहां से आजाद ने बच्चे बच्चे के अंदर आजादी का वह बीज बोया जिसे अंग्रेज कभी जीते जी दबा नहीं सकते थे. आजाद की बातें और उनका खुद को शहीद कर देना ही उनके आजादी पसंद होने का प्रमाण था. आपको जानकर हैरानी होगी कि जब आजाद मृत पड़े थे तब भी अंग्रेज उनके पास जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे. जब उन्हें ये पता चल गया कि वो मृत हो चुके है तब अंग्रेज उनके पास गए और आजाद के मृत शरीर को गोली मारी. यह अमानवीयता थी जो अंग्रेजों ने दिखाई. लेकिन याद रहे आजाद कभी जिंदा अंग्रेजों के हाथ नहीं आए. यह मलाल तो उन्हें भी रहा हम महात्मा गांधी को आज चाहे वैचारिक रूप से कितना भी कुछ बुरा भला कह रहे हों. लेकिन यह बात कोई झुंठला नहीं सकता है कि हर एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महात्मा गांधी का सम्मान करता था, उनसे प्रभावित था. चंद्रशेखर आजाद भी गांधी से कापी प्रभावित थे. बता दें कि पहली बार जब अंग्रेजों ने आजाद को गिरफ्तार किया तो उन्हे मिजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया. लेकिन आपको पता है कि आजाद का हर सवाल का जवाब क्या था. आजाद से पिता का नाम पूछने पर उन्होंने बताया स्वतंत्रता, चंद्रशेखर से जब जज ने उनका नाम पूछा तो उन्होंने बताया आजाद, घर का पता पूछने पर आजाद बोले जेल मेरा घर है. बता दें कि आजाद के जवाबों के कारण मिजिस्ट्रेट को काफी गुस्सा आ गया और उसने आजाद को 15 कोड़े मारने की सजा दी थी. इस दौरान हर कोड़े के बाद आजाद दो ही शब्द बोलते थे- वंदे मातरम, महात्मा गांधी की जय. इसी घटना के बाद से ही चंद्रशेखर आजाद के नाम से प्रसिद्ध हुए

लाला लाजपत राय

लाजपत राय ने वकालत करना छोड़ दिया और देश को आजाद कराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। उन्होंने यह महसूस किया कि दुनिया के सामने ब्रिटिश शासन के अत्याचारों को रखना होगा ताकि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अन्य देशों का भी सहयोग मिल सके। इस सिलसिले में वह 1914 में ब्रिटेन गए और फिर 1917 में यूएसए गए अक्टूबर 1917 में उन्होंने न्यू यॉर्क में इंडियन होम रूल लीग की स्थापना की। वह 1917 से 1920 तक अमेरिका में रहे 1920 में जब अमेरिका से लौटे तो लाजपत राय को कलकत्ता में कांग्रेस के खास सत्र की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया। जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ उन्होंने पंजाब में ब्रिटिश शासन के खिलाफ उग्र आंदोलन किया। जब गांधीजी ने 1920 में असहयोग आंदोलन छेड़ा तो उन्होंने पंजाब में आंदोलन का नेतृत्व किया। जब गांधीजी ने चौरी चौरा घटना के बाद आंदोलन को वापस लेने का फैसला किया तो उन्होंने इस फैसले का विरोध किया। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस इंडिपेंडेंस पार्टी बनाई वर्ष 1928 में ब्रिटिश सरकार ने संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए साइमन कमीशन को भारत भेजने का फैसला किया। कमीशन में कोई भी भारतीय सदस्य न होने की वजह से सभी लोगों में निराशा उर क्रोध व्याप्त था। 1929 में जब कमीशन भारत आया तो पूरे भारत में इसका विरोध किया गया। लाला लाजपत राय ने खुद साइमन कमीशन के खिलाफ एक जुलूस का नेतृत्व किया। हांलाकि जुलूस शांतिपूर्ण निकाला गया पर ब्रिटिश सरकार ने बेरहमी से जुलूस पर लाठी चार्ज करवाया। लाला लाजपत राय को सिर पर गंभीर चोटें आयीं और जिसके कारण 17 नवंबर 1928 में उनकी मृत्यु हो गई

भगत सिंह

भगत सिंह आतंकवाद के व्यक्तिगत नियमों के खिलाफ थे उन्होंने जन-समुदाय को एकत्रित करने का एक संकल्प लिया 1928 में उनकी मुलाकात एक प्रसिद्ध क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद के साथ हुई भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद दोनों क्रांतिकारियों ने ‘हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ’ बनाने के लिए संगठन तैयार किया और फरवरी 1928 में साइमन कमीशन की भारत यात्रा के दौरान, लाहौर में साइमन कमीशन की यात्रा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था इन विरोध प्रदर्शनकारियों में लाला लाजपत राय भी शामिल थे, जो पुलिस द्वारा की गई लाठी चार्ज में घायल हो गए और बाद में इन्हीं चोटों के कारण उनकी मृत्यु भी हो गयी थी। भगत सिंह ने लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए उनकी हत्या के लिए जिम्मेदार ब्रिटिश अधिकारी, उप निरीक्षक जनरल स्कॉट को मारने का फैसला कर लिया। परन्तु उन्होंने गलती से सहायक अधीक्षक सॉन्डर्स को ही स्कॉट समझ कर  गोली मार दी थी भगत सिंह ने 8 अप्रैल 1929 को केंद्रीय विधान सभा में एक बम फेंका और उसके बाद स्वयं गिरफ्तार हो गये थे अदालत ने भगत सिंह, सुख देव और राज गुरु को उनकी विद्रोही गतिविधियों के कारण मौत की सजा सुनाई। उन्हें 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई थी। भगत सिंह को भारत में आज भी बड़ी संख्या में युवाओं के द्वारा एक आदर्श के रूप में देखा जाता है उनकी बलिदान की भावना, देशभक्ति और साहस कुछ ऐसा है जिसे आने वाली पीढ़ियों में सम्मान से देखा जाएगा

नाना साहेब

नाना साहेब को ‘बालाजी बाजीराव’ भी कहा जाता है.1749 में छत्रपति शाहू जी ने पेशवाओं को मराठाओं का शासक बना दिया था. शाहू जी का अपना कोई पुत्र नहीं था, इसीलिए उन्होंने पेशवाओं को शासक बना दिया था. मराठा मंत्रियों को पेशवा कहा जाता था 1851 में बाजी राव द्वितीय की मृत्यु के बाद, Doctrine of Lapse Treaty के कारण नाना साहेब को मराठा सिंहासन नहीं मिला. अंग्रेज़ों ने नाना साहेब को 8,00,000 पाउंड सालाना पेंशन के रूप में देना निश्चित किया गया था. परन्तु नाना साहेब ने पेशवा की उपाधि ग्रहण कर ली और अंग्रेज़ सरकार ने उनकी पेंशन रोक दी. दीवान अज़ीमुल्लाह खान की सहायता से नाना साहेब ने इंग्लैंड की रानी विक्टोरिया को आवेदन पत्र भेजा. अज़ीमुल्लाह ने बहुत से प्रयत्न किए, लेकिन सफ़ल नहीं हुए. नाना साहेब को अंग्रज़ों के इस रवैये से बहुत दुख पहुंचा यहां तक फिर भी सब ठीक था, पर जैसा कि इतिहास के हर बिंदु के साथ ही होता आया है. नाना साहेब के इसके बाद का जीवन भी रहस्यमयी है. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि नाना साहेब ने मजबूरी में स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया. हालांकि बचपन से हमें यही पढ़ाया गया है कि नाना साहेब आज़ादी की पहली लड़ाई के शिल्पकार थे. हक़ीकत पर मुहर लगाने की न तो हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी है और न ही उतनी काबिलियत. तो जो पढ़ते आए हैं, उसी पर अडिग रहते हैं

मंगल पांडे

मंगल पांडे का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के एक गांव नगवा में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम ‘दिवाकर पांडे’ तथा माता का नाम ‘अभय रानी’ था. वे सन 1849 में 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हुए थे. वे बैरकपुर की सैनिक छावनी में “34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री” की पैदल सेना में एक सिपाही थे. यहीं पर गाय और सूअर की चर्बी वाले राइफल में नई कारतूसों का इस्तेमाल शुरू हुआ. जिससे सैनिकों में आक्रोश बढ़ गया और परिणाम स्वरुप 9 फरवरी 1857 को ‘नया कारतूस’ को मंगल पाण्डेय ने इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया. 29 मार्च सन् 1857 को अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन भगत सिंह से उनकी राइफल छीनने लगे और तभी उन्होंने ह्यूसन को मौत के घाट उतार दिया साथ ही अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेन्ट बॉब को भी मार डाला. इस कारण उनको 8 अप्रैल, 1857 को फांसी पर लटका दिया गया. मंगल पांडे की मौत के कुछ समय पश्चात प्रथम स्वतंत्रता संग्राम शुरू हो गया था जिसे 1857 का विद्रोह कहा जाता है.

 

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